Friday, 06 November 2020 6:20
G.A Siddiqui
अरसद खान।
सिद्धार्थनगर। बुद्ध धरा की मिट्टी में वो तासीर है, जो जनपद को विश्वपटल पर अपनी पहचान बनाने में सहायक सिद्ध हो रही है। जी हाँ कालानमक के लिए जनपद सिद्धार्थनगर की अलग ही पहचान है, यहां की माटी कालानमक की खुशबू पूरे देश में बिखेर रही है।कालानमक की खुशबू बिखेरने के लिए विश्वव में अपनी पहचान के साथ ही जनपद सिद्धार्थनगर तिन्नी चावल के लिए भी प्रसिद्ध है। तिन्नी चावल की पैदावार जनपद में बड़े पैमाने पर होती है। तिन्नी चावल की अपनी अलग ही खासियत है, इसमें आयरन की काफी मात्रा होती है, जो शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है। इसी कारण इसका प्रयोग दवा बनाने में भी किया जाता है।
हालांकि यह एक जंगली होता है, इसको काटकर चावल तैयार करने की प्रक्रिया बेहद मुश्किल व थका देने वाली होती है। बावजूद इसके जनपद के डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के इनावर, लेवड ताल, मेही तालाब, सहित शोहरतगढ तहसील के खुनुवा ताल, सहित लोटन के अजाने ताल आदि जो सैकड़ो हेक्टेयर में फैले हैं, तिन्नी चावल की काफी पैदावार हुआ करती थी, आज भी पैदावार पहले की अपेक्षा भले ही कम है, मग़र होती है।
बरसात के समय लोग अपने-अपने एरिया में प्रकृति द्वारा उगती फसल को बांध देते हैं, इसके बाद तय शुदा वक्त में गांठ खोली जाती है। उसके बाद गांठ खोल उसकी पिटाई होती है फिर तिन्नी के धान को घर ले जाया जाता है और नवरात्र के समय इसकी कुटाई कर चावल निकाल कर बाजार में उपलब्ध कराते हैं।
जंगली चावल की किस्मों में मूल अनुवांशिक गुणें को बरकरार रखने की वजह से तिन्नी, चावल की खेती के लिए कई किस्मों का आधार बना हुआ है। इन किस्मों को बचाकर रखना जरूरी है। इसके अलावा, यह चावल अत्यधिक विपरीत मौसम में या फिर बंजर जमीन पर भी उग सकता है। यह असामान्य मौसम के दौरान हमारे लिए खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकता है।
बता दें कि जंगली चावल सामान्य खाने वाले चावल की तुलना में कहीं अधिक पौष्टिक होते हैं। दिखने में खराब होने के बावजूद इसमें अधिक पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं।एंटीऑक्सीडेंट संबंधी गतिविधि होने की वजह से इन पौधों में टोकोक्रॉमनल की अधिक मात्रा होती है जिससे चावल की पौष्टिकता बढ़ती है। इसकी कीमत 130 रुपए प्रति किलो है। तिन्नी का चावल एक महत्वपूर्ण जर्मप्लाज्म है। यह विशिष्ट जरूरी गुणों और अत्यधिक अनुवांशिक विविधताओं से भरा है और इसे संरक्षित करने की जरूरत है। पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) की जानकारी और अनौपचारिक सांस्कृतिक संस्थाएं जैसे, भार समुदाय की महिलाओं का ज्ञान तिन्नी के चावल को वर्षों से संरक्षित रखने में काफी सहायक रहा है।