Friday, 20 November 2020 6:02
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शैलेन्द्र पंडित
जिले में तैनात 108 और 102 एंबुलेंस की हालत बद से है बत्तर:कौन होगा इनका खेवनहार
बांसी। उत्तर प्रदेश सरकार में कद्दावर मंत्री जय प्रताप सिंह जिनके अपने गृह जनपद ही नहीं पूरे प्रदेश के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण व संवेदनशील विभाग सौंपा गया, लेकिन यह बहुत विडंबना है कि जिले का स्वास्थ्य महकमा खुद अस्वस्थ है उससे भी दयनीय हालत आकस्मिक सेवा के लिए तैनात 108 व 102 तथा ए एल यस एंबुलेंस सेवा की है, कोविड-19 के चलते एवं जिले में ए एल एस की चार एंबुलेंस जिला मुख्यालय पर 4 नई भेजी गई जिसमें वर्तमान में 3 की स्थिति संतोषजनक नहीं है एंबुलेंस सेवा का संचालन दक्षिण भारत कर्नाटक की एक प्राइवेट कंपनी द्वारा किया जा रहा है गंभीर बीमार या गंभीर रूप से घायल को इस एंबुलेंस में आज भेजना खतरे से खाली नहीं होता है।
2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में 108 और 102 एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की गई थी जिससे गंभीर रूप से घायल जब बीमार जिसे तत्काल स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया जा सके। जिले में वर्तमान में कुल 63 एंबुलेंस हैं जिसमें 108 के 29, 102 के 30 एवं कोविड-19 के प्रकोप के शुरू होने कुछ ही दिन बाद यदि ए एल एस की सेवा शुरू की गई जो जिला मुख्यालय पर ही रहती है आवश्यकता पड़ने पर इसको निर्धारित जगह पर भेजा जाता है। एक एंबुलेंस में एक चालक (पायलट) एवं एक सहायक जिसे इमरजेंसी मेडिकल ट्रीटमेंट नाम से जाना जाता है। एंबुलेंस गाड़ी को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए जिला मुख्यालय पर (पीएम) एक प्रोग्राम मैनेजर (एम ई) मेंटेनेंस इंजीनियर 3 एवं एक कर्मी (एफ ई) फिटनेस इंजीनियर के रूप में तैनात हैं। एंबुलेंस सेवा का संचालन करने के लिए कर्नाटक की एक प्राइवेट फर्म जी. वी. के.ई. एम. आर. ई. को दिया गया है इसमें जितने भी कर्मचारी हैं सभी संविदा पर रखे गए हैं एंबुलेंस के चालक व उनके साथ चलने वाले सहयोगी जो तीन-चार साल पुराने हो चुके हैं उन्हें 11000 से 13 हजार एवं जो नए हैं उन्हें 5000 से 7000 की मानदेय मिलता है वह भी इनके खाते में हर माह का मानदेय भी नहीं आता है, कभी-कभी तीन-चार या 5 माह तक हो जाता है मानदेय न मिलने के कारण यह सभी बेहतर आर्थिक तंगी के दौर से गुजरते हैं अपनी बात यदि किसी जिम्मेदार से कहते भी हैं तो उन्हें बड़ी ही बेरुखी अंदाज में धमकी दी जाती है कि नौकरी से निकाल देंगे। इनकी समस्या उत्पीड़न का आलम यह है कि गाड़ी की पंचर होने या उनकी धुलाई करवाने पर उसका खर्च स्वयं वहन करना पड़ता है इसका भुगतान एंबुलेंस संचालक एजेंसी कभी नहीं करती है इन्हें इस प्रताड़ना से भी गुजरना पड़ता है कि इनको जो मानदेय मिलता है उसमें से हर माह 25 से 30प्रतिशत लोगों के मानदेय में बिना कोई कारण बताए 2000 से 3000 कटौती कर दी जाती है।
एंबुलेंस के 60 से 70 हजार किलोमीटर चलने के बाद टायर किसी भी किसी भी दशा में चलने लायक नहीं रह जाते ऐसी दशा में मजबूरन उसे खड़ा करना पड़ता है इसकी लिखित सूचना के बाद भी कब टायर ट्यूब बदला जाएगा कोई तय सीमा नहीं है। एंबुलेंस में जीपीआरएस सिस्टम में कितना किलोमीटर दिखेगा उतना ही तेल मिलेगा इतना ही नहीं तेल डलवाते समय की वीडियो बनाकर संचालन करने वाली एजेंसी को भेजना रहता है। किसी घटना या प्रसूता को एंबुलेंस से ले जाने के लिए यदि उस पर कॉल किया जाता है तो इसके प्रदेश नियंत्रण कार्यालय में अपने सिस्टम में यह देखा जाता है कि काल किस स्टेशन से आ रहा है तो ठीक उसके विपरीत अधिक दूरी वाले एंबुलेंस को कॉल कर भेजा जाता है मसलन इटवा में एंबुलेंस की आकस्मिक आवश्यकता है तो बांसी या नौगढ़ को कॉल किया जाएगा यही कारण है कि प्राय: एंबुलेंस समय से दो-तीन घंटे विलंब से पहुंचता है।
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कोरोना कॉल में आई ए एल एस एंबुलेंस में एक को छोड़ो बाकी सब है बदहाल
बांसी। जिले में आई ए एल एस की चार एंबुलेंस की हालत कुछ हद तक ठीक है लेकिन इसमें भी एक को छोड़कर तीन के टायर ट्यूब चलने योग्य नहीं रह गए हैं। कोरोना कॉल मैं भी इन गाड़ियों में मास्क, गलब्स, सेनीटाइजर, पीपीई किट यदा कदा ही मिले, जब यह प्रमाणित हो गया कि कोरोना पॉजिटिव मरीज को एंबुलेंस से ले जाना है। 108, 102 एंबुलेंस में मरीज के साथ जाने वाले सहयोगी को बैठने की जो स्थाई बेंच लगाई गई है वह सभी टूटी हुई है एंबुलेंस में अधिकतर के दरवाजे खोलने की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि रस्सी से बांध कर रखा जाता है इतना ही नहीं इनके हूटर से ज्यादा आवाज इन गाड़ियों से निकलता है जो किसी भी मरीज के लिए और भी जानलेवा रहता है।
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आकस्मिक सेवा की एंबुलेंसों बदहाली की कई घटनाएं हो चुकी हैं आम
बांसी। 108 व 102 एंबुलेंस के बदहाली की कई घटनाएं जिले में आ चुकी है बीते माह शुरुआत में एक गरीब परिवार को मरीज दिखाने के लिए एंबुलेंस ना मिलने की दिशा में परिजनों ने ठेले पर लादकर जिला अस्पताल पहुंचे, जिस पर स्वास्थ्य मंत्री का गृह जनपद की बात कह लोगों ने काफी दुख एवं आक्रोश व्यक्त किया। गत माह के अंत में खेसरहा ब्लॉक के देवगह गांव निवासी विकास प्रसव हेतु मरीज को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खेसरहा ले जाने के लिए एंबुलेंस को कॉल किया और कॉल सेंटर पर बात कराया गया फिर चालक से बात कराई गई अचानक से फोन होल्ड पर कर दिया गया इसके कुछ मिनट बाद फोन कट गया किसी तरह निजी साधन से प्रसूता को अस्पताल लेकर आए तो वहां एक एंबुलेंस मिली तो चालक व उसके सहयोगी से विकास की झड़प भी हो गई बाद में पता चला कि एंबुलेंस तेल के अभाव में कई दिनों से खड़ी है।
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स्वास्थ्य मंत्री के गृह जनपद में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से कोमा में चली गई है: पूर्व विधायक लालजी यादव
बांसी। पूर्व विधायक व समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष लालजी यादव ने 108 और 102 एंबुलेंस की दशा पर मुखर होकर कहा इसमें भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया है, 2012 हमारे नेता व तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस योजना की शुरुआत करते हुए कहा था कि यह मरीजों को सही समय पर इलाज करने में महती भूमिका अदा करेगी इतना ही नहीं स्वास्थ सेवा में मील का पत्थर भी साबित होगा लेकिन आज यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि स्वास्थ्य मंत्री के गृह जनपद में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से कोमा में चली गई हैं। एंबुलेंस सेवा का हाल तो भगवान भरोसे चल रहा है एक दर्जन से अधिक गाड़ियां खराब टायर के कारण खड़ी हैं और कई गाड़ियां तेल के अभाव में प्राय: खड़ी रहती हैं। हमारी पार्टी इसको लेकर अतिसंवेदनशील है। शीघ्र ही इस पर व्यापक रणनीति तय करके आंदोलन किया जाएगा।
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कोरोना कॉल से लेकर आज भी तमाम समस्याओं के कारण बदहाल है एंबुलेंस की सेवा: अमर गुप्ता
बांसी। जीवनदायिनी स्वास्थ्य विभाग 108, 102, ए एल एस एंबुलेंस कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश के जिला अध्यक्ष अमर गुप्ता ने कहा कि कोरोनावायरस जैसी वैश्विक महामारी में जिले की एंबुलेंस सेवा बुरी तरह से बीमार रहती है बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने हेतु 63 एंबुलेंस जनपद में उपलब्ध है लेकिन जरूरत के समय यह बीमार रहती है और सरकार इसकी समस्याओं का निस्तारण समय से नहीं करती है और ना ही संबंधित फर्म को कोई दिशा निर्देश देती है समय पर डीजल नहीं समय पर डीजल नहीं, 6 वर्षों से गाड़ियों के मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। वर्तमान में 18 गाड़ियां टायर,तेल व अन्य यांत्रिकी खराबी के कारण खड़ी है, टायर, तेल व मानदेय की व्यवस्था कब होती है जब इसका संचालन पूर्णतया ठप हो जाता है। कंपनी नई समय नया तरीका अपना लिया है कि जब मरीज फोन करता है तो उसे 40 से 80 किलोमीटर दूरी की एंबुलेंस को ऑटो असाइन के माध्यम से उपलब्ध कराती है, जिसकी जिम्मेदारी हम लोगों पर थोपी जाती है।
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एंबुलेंस संचालक कंपनी की बनाई गई नियमावली निहायत ही शर्मनाक अमानवीय व भ्रष्ट व्यवस्था को दर्शाता है
बांसी। 108 एवं 102 एंबुलेंस की संचालक निजी कंपनी द्वारा यह नियम बनाया गया है कि 108 एंबुलेंस प्रतिदिन 120 किलोमीटर या 4 मरीज तथा 102 एंबुलेंस प्रतिदिन 140 किलोमीटर या 6 केस प्रतिदिन अनिवार्य है जो इस वर्ष के प्रारंभ से ही असंभव होता रहा उसका कारण है कि कंपनी द्वारा एंबुलेंस को ऑटो असाइन के माध्यम से 40 से 80 किलोमीटर की दूरी वाले को उपलब्ध कराया जाता है इसमें दूरी की बाध्यता तो संभव है लेकिन तय केस मिल पाना मुश्किल है जो निहायत ही शर्मनाक अमानवीय व भ्रष्ट व्यवस्था को दर्शाता है।