Thursday, 12 July 2018 1:45 pm
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सरवर खान महराजगंजवी कि क़लम से
आज हिन्द के मुसलमानों के सियासी हालात को समझने के लिए तारीख के अवराक पलटने की जरूरत है कि किस तरह से पूरी दुनिया में हर सदी में मुस्लिमों के खिलाफ एक गलत माहौल बनाया गया। आप उस दौर को भी देखें जब इक़तिदार की कुर्सी वोट से नही बल्कि मैदाने जंग से तय हुआ करता था उस दौर में भी यहूद व नसारा के हुक्मरां या पोप कहा करते थे कि हमारी जंग सिर्फ सलाहुद्दीन अय्यूबी से नही बल्कि रोजे कयामत तक पैदा होने वाले हर मुसलमान है। और इन्ही बातों को यहूद व नसारा ने पूरी दुनिया के हर कौमों के दिलों में बैठा दिया कि मुसलमान तुम्हारा दुशमन है और यही काम इन्होंने हिंदुस्तान में भी किया। आप खुद देखिये की 1857 से पहले अपने मुल्क में आप को किसी मजहबी दंगे का सबूत नही मिलेगा। लेकिन 1857 के जंगे गदर के बाद इन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के दरम्यान दरार पैदा करना शुरू किया और इसमें वो कामयाब भी हुये। लेकिन अब आप 1947 के बाद कि तारीख देखिये की किस तरह जो बीज अंग्रेजों ने बोया था उसका असर हिंदुस्तानी सियासत में देखने को मिला।मुल्क के बंटवारे के बाद हिंदुस्तानी मुसलमानों ने कांग्रेस से लेकर हर उस पार्टी का झंडा उठाया जिन्होंने अपने आप को सेक्युलर कहा। लेकिन उसके बाद भी मुस्लिमों के हिस्से में दंगे के नाम पर कत्लेआम और पोटा के तहत नौजवानों को सलाखों के पीछे डाला गया। इनके बिजनेस को तबाह व बर्बाद किया गया। ये सब होता रहा लेकिन कोई सेक्युलर जमात ने मुस्लिमों की फिक्र नही की। और सिर्फ चुनाव के दौरान कम्युनल पार्टियों का डर दिखा कर मुस्लिमों का वोट लेते रहे। इन्हीं सब बातों का दर्द लेकर अगर किसी मुस्लिम ने किसी सियासी जमात का गठन किया तो उसे कम्युनल पार्टी का एजेंट कहा गया। ताकि मुस्लमान सियासी तौर पर मजबूत ना हो सके। और हुआ भी यही हर दौर में पैदा होने वाली मुस्लिम कियादत को एजेंट कहा गया। और आज आप खुद देखिये हक़ बयानी की बुनियाद पर बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी साहब को किस तरह रोकने का काम किया जा रहा है यहां तक कहा जा रहा है कि ओवैसी साहब के बयान की वजह से समाज मे नफरत पैदा हो रही है। और इसलिये हम ओवैसी साहब का साथ नही दे सकते। अगर यही नफरत की वजह है तो आप लोगों ने डॉक्टर मसूद साहब को तस्लीम क्यों नही किया । किस बिना आप ने उन्हें रिजेक्ट किया?
दोस्तों सच्चाई तो यह है कि आप यहूद व नसारा के जाल में फंस चुके हैं जो चाहता है कि पूरी दुनिया मे कहीं पर भी मुस्लिम कियादत पैदा ना होने पाए। आप खुद सोचिए अगर सेक्युलर पार्टियों की मन्सा साफ होती और ये मुस्लिमों का हक अदा करते तो मुस्लिम कियादत की जरूरत ही ना पड़ती। सियासत लोगों के साथ इंसाफ और सही ब्यवस्था बनाने का नाम है आप देखिए कि ये सिक्युलर पार्टियां क्या यह काम कर रही हैं। अगर नही तो उठिए और अपनी सफों में इतिहाद पैदा करिये और अपनी कियादत को मजबूत करिये। अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हम सभी को सियासी समझ अता फरमाये।
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