Tuesday, 05 May 2020 8:20 pm
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समाज की सबसे छोटी इकाई ‘परिवार’ को झेलना पड़ेगा इसका दुष्प्रभाव, महिलाएं-बच्चे होंगे सबसे अधिक प्रभावित
आज़मगढ़ 5 मई 2020। लॉक डाउन से उपजे हालात ने करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छीन ली है। बेरोजगारी रिकार्ड स्तर पर है। आम आदमी को राशन और दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। ऐसी हालत में शराब की दुकानों को खुलवाने का सरकार का फैसला और प्रशासनिक स्तर पर उसे लागू करने का उत्साह समझ से परे है।
आज़मगढ़ रिहाई मंच प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि जीवन रक्षक दवाओं तक की आपूर्ति अभी बाधित है, राशन ना मिल पाने की शिकायतें भी बरकरार हैं। लेकिन इन चीजों के प्रति इतना उत्साह कभी दिखाई नहीं पड़ा। भोजन के लिए लॉक डाउन तोड़ने वालों पर पुलिस की लठियाँ न जाने कितनों पर बरसीं, कितने लोगों को आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी के लिए बाहर निकलने पर पीट गया। शराब की बिक्री के पहले दिन ही लॉक डाउन की धज्जियां उड़ाती कई खबरें आईं लेकिन कहीं भी पुलिस की वह सख्ती देखने को नहीं मिली। शराब की दुकानों को खुलने के लिए राशन और दवा के मुकाबले में अधिक समय भी दिया गया है।
शराब की बिक्री के दुष्प्रभाव भी पहले ही दिन सामने आने लगे। जौनपुर में एक पति ने शराब के नशे में अपनी पत्नी की हत्या कर दी। शराब के नशे में लॉक डाउन की धज्जियां उड़ेंगी इसकी बानगी पहले दिन ही मिलने लगी है। जिन शर्तों के साथ सरकार शराब की दुकानों को खोलने की बात कर रही है उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए पहले ही काम के बोझ तले दबी पुलिस को अतरिक्त ऊर्जा खर्च करनी पड़ेगी। उसके बाद भी शायद वांछित नतीजा हासिल न हो पाए।
आर्थिक रूप से कंगाल हो चुके निम्न और मध्यम वर्ग के परिवारों के पुरुष शराब पर पैसे खर्च करने के लिए अपने बच्चों की रोटी पर डाका डालेंगे। इससे घरेलू हिंसा के बढ़ने की प्रबल संभावना बनती है। नशे की लत, शराबखाने का आकर्षण, धन का अभाव जब एक साथ होंगे तो चोरी, छिनेती की घटनाओं का कारण भी बनेंगे। समाज की सबसे छोटी इकाई को संकट में डालकर कोरोना जैसी महामारी से निपटना और मुश्किल हो जाएगा।
कोई शक नहीं कि देश की अर्थव्यवस्था पहले ही चरमरा गई थी लॉक डाउन से इसका हाल और बुरा हो गया है, राजस्व की कमी है, लेकिन उसे पूरा करने के लिए शराब की बिक्री की अनुमति देने के अलावा दूसरे विकल्प तलाशे जाने चाहिए थे।