Saturday, 15 September 2018 1:053
G.A Siddiqui
अरसद खान।
सिद्धार्थनगर। इंडिया और नेपाल को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग का हाल पगडंडी से भी बदतर है। लोग राष्ट्रीय राजमार्ग से न जाकर पगडंडी से जाना पसंद कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग में समतलीकरण का औसत देखा जाये तो सड़क कम गड्ढे ज्यादा हैं। जी हाँ हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 33 की जो बस्ती से पड़ोसी देश नेपाल को जोड़ती है राष्ट्रीय राजमार्ग-233 गड्ढों में तब्दील हो चुका है। इससे आवागमन में खासी दिक्कत हो रही है। पूर्व में इसके लिए कई बार धरना प्रदर्शन हुये जिसमें पूर्व विधायक विजय पासवान की अगुवाई में स्थानीय लोगों ने जिलाधिकारी को मार्ग की मरम्मत कराने के लिए ज्ञापन सौंपा। समस्या हल न होने पर 15 सितंबर को रास्ता जाम व धरना-प्रदर्शन भी किया गया, मगर कोई फायदा नजर नही आ रहा है। हा इतना फायदा जरूर हुआ कि मरम्मत के नाम पर आए 10करोड़ रूपये का बंदरबांट कर लिया गया। बता दें कि राष्ट्रीय राज मार्ग एनएच 233 की बदहाली को देखते हुए सरकार ने गड्ढामुक्त करने के लिए दस करोड़ रुपये अवमुक्त किया था। छिटपुट काम कर धन का बंदरबांट हुआ, नतीजन सड़क तालाब नजर आ रही है। सड़क में बने गड्ढों से जहां लोगों का चलना कठिन हो गया है,वहीं आए दिन वाहनों के फंसने से घंटों जाम लग जाता है। लोगों के विरोध के बाद भी जिम्मेदार सो रहे है। अब यहां के लोगो को गड्ढों भरी सड़क से छुटकारा मिलना मुश्किल ही नही नामुमकिन लग रहा है। एनएच 233 की स्थिति पर नजर डाली जाये तो रुधौली से बासी तक सड़क कम गड्ढे ज्यादा हैं, बासी से मुख्यालय तक भी सड़क का बुरा हाल है। सबसे भयावह स्थिति मुख्यालय से नेपाल बार्डर स्थिति ककरहवा बाजार तक है, यहाँ तक सड़क हमेशा तालाब बना रहता है। इसी मार्ग से भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली कपिलवस्तु में आने-जाने वाले पर्यटक भी इसी मार्ग से जाते हैं।
विकास को लगे थे पंख।
यूपीए की सरकार ने वर्ष 2012में सड़क परिवहन व राजमार्ग विभाग की तरफ से नेपाल सीमा के कपिलवस्तु से वाराणसी तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 233 जिसकी लम्बाई 292 किमी फोरलेन सड़क निर्माण के लिये लगभग18 हजार करोड़ रुपये स्वीकृति किया था और सड़क निर्माण के लिए 950 करोड़ रुपये की पहली किश्त जारी की थी। उस समय जनपदवासियो को लगा था कि अब सिद्दार्थनगर भी विकास की कड़ी में जुड़ गया है। उस समय समय केंद्रीय मंत्री डॉ. सीपी जोशी ने सांसद को भेजे पत्रक में कहा है था कि सिद्धार्थनगर में नेपाल सीमा से टांडा के निकट बस्ती में घाघरा पुल तक कार्य कराने की स्वीकृति मिल चुकी है। उन्होंने यह पत्र सांसद की ओर से प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे पत्र का जवाब देते हुए लिखा था कि फोरलेन की यह सड़क जिले की बुद्ध स्थली कपिलवस्तु से शुरू होकर बांसी, रूधौली, बस्ती वाया टांडा होते वाराणसी तक जानी है। पूर्वांचल की सांस्कृतिक राजधानी को विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्थली कपिलवस्तु से जोड़ने की योजना के तहत यह निर्माण कार्य होगा। सांसद कार्यालय के तरफ से कहा गया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग विकास में मील का पत्थर साबित होगा, मगर फोर लेन की बात तो छोड़ दें, टू लेन की सड़क का निर्माण आज तक अधूरा पड़ा है।
छह जिलों को जोड़ने वाली वाराणसी-नेपाल फोरलेन सड़क का निर्माण फिलहाल अधर में लटक गया है। आजमगढ़ जिले के कप्तानगंज से लेकर वाराणसी तक नेशनल हाइवे अथारिटी को अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी। इस नाते 98.6 किमी तक सड़क चौड़ीकरण का काम शुरू नहीं हो सका। उधर, नेशनल हाइवे अथारिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) के अधिकारियों का कहना है राज्य सरकार जब तक 90 प्रतिशत जमीन अधिग्रहीत नहीं कराती है, तब तक वे फोरलेन का काम शुरू नहीं करा सकेंगे। बताते चलें कि 2012 में यूपीए सरकार ने वाराणसी से नेपाल के लुंबनी तक नेशनल हाइवे बनाने की घोषणा की थी। प्रस्ताव के बाद सड़क चौड़ीकरण का सर्वे हुआ। बजट के चक्कर में अभी फाइल आगे बढ़ती, उसी समय चुनाव के बाद अधिसूचना जारी कर दी गई। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही वाराणसी-नेपाल सड़क मार्ग की फाइल फिर तेजी से आगे बढ़ी। वाराणसी से लेकर नेपाल तक 292 किलोमीटर तक फोरलेन सड़क निर्माण के लिए करीब 18 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिया गया। नेशनल हाइवे अथारिटी आफ इंडिया (एनएचएआई) वाराणसी डिविजन ने निर्माण प्रक्रिया भी शुरू करा दी। वाराणसी से जौनपुर, आजमगढ़, अंबेडकरनगर, बस्ती, टांडा और सिद्धार्थनगर से होकर गुजरने वाले फोरलेन के निर्माण को कुल पांच भागों में बांटा गया। इसके तहत एक टेंडर सिद्धार्थनगर जिले के नौगढ़ से बस्ती, बस्ती से टांडा, टांडा से कप्तानगंज, कप्तानगंज से लालगंज और लालगंज से वाराणसी के लिए है। धन मिलने के बाद एनएचएआई ने टेंडर प्रक्रिया शुरू करा दी। नौगढ़ से कप्तानगंज तक के लिए जमीन उपलब्ध हो गई। यहां काम भी शुरू हो गया। वहीं, आजमगढ़ से वाराणसी तक जमीन न मिलने से निर्माण की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी। चूंकि राज्य सरकार को सड़क निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध कराना होता है। सर्वे के दौरान विरोध हुआ और किसानों ने जमीन देने से इंकार कर दिया। किसानों का तर्क है कि कप्तानगंज से वाराणसी के बीच मार्ग पर कई छोटी-बड़ी बाजारें स्थित हैं। फोरलेन बनने से बाजार उजड़ जाएंगे, इस प्रकार पांच साल बाद भी फोरलेन का सपना मात्र सपना ही रह गया एवज में नई सड़क के रूप में टूटी फूटी एवं गड्ढा युक्त सड़क जरूर ईजाद हो गई।