Sunday, 05 February 2017 07:00 PM
Nawaz Shearwani
गोरखपुर। उप्र विधानसभा चुनाव में प्रमुख पार्टियों ने गोरखपुर-बस्ती मंडल में केवल 9 निषाद बिरादरी के प्रत्याशियों पर भरोसा जताया हैं। बसपा ने 5, सपा ने 3 व भाजपा ने केवल 1 को चुनाव जीतने के काबिल समझा।
गोरखपुर-बस्ती मंडल के विधानसभा क्षेत्रों में निषाद बिरादरी की मजबूत दखल है। निषाद बिरादरी को सभी राजनीतिक दलों लुभाने की कोशिश करते हैं । कांग्रेस, सपा, बसपा, भाजपा सभी निषादों के हक को वाजिब करार देते है। लेकिन जब टिकट देने की बारी आती हैं तो हाथ रोक लेते हैं। पिछले चुनाव में निषाद बिरादरी के जेपी निषाद, राजमति निषाद व लक्ष्मीकांत निषाद विधानसभा पहुंचने में कामयाब हो गए थे। राजमति (पुत्र लड़ेगा) को छोड़कर दोनों फिर से चुनाव लड़ रहे है।
बसपा ने बांसी से लालचंद निषाद, फरेंदा से बेचन निषाद, कैंपियरगंज से अर्चना निषाद, चौरी-चौरा से जेपी निषाद व रुद्रपुर से चन्द्रिका निषाद को टिकट दिया हैं। चौरी-चौरा से विधायक जेपी निषाद दुबारा टिकट पाने में कामयाब हुए हैं।
सपा ने पिपराइच विधायिका राजमति के पुत्र अमरेन्द्र निषाद, मेंहदावल से लक्ष्मीकांत निषाद, चिल्लूपार से रामभुआल निषाद को टिकट दिया हैं। मेंहदावल विधायक दुबारा टिकट पाने में कामयाब रहे। वहीं भाजपा ने एक मात्र देवरिया की रुद्रपुर सीट से जय प्रकाश निषाद को टिकट दिया हैं। जय प्रकाश पिछले चुनाव में तीसरे नम्बर पर थे। गोरखपुर ग्रामीण से पीस पार्टी व निषाद पार्टी गठबंधन ने डा. संजय निषाद को उतारा हैं।
राजनीतिक दलों के आंकड़ों के मुताबिक मंडल में सर्वाधिक निषाद मतदाता गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में है। गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की संख्या तीन से 3.50 लाख के बीच बताई जाती है। इसी क्रम में देवरिया में एक से सवा लाख, बांसगांव में डेढ़ से दो लाख, महराजगंज में सवा दो से ढाई लाख तथा पडरौना में भी ढाई से तीन लाख निषाद बिरादरी के मतदाता हैं। गोरखपुर ग्रामीण में करीब 80 हजार निषाद वोटर हैं।
गोरखपुर मंडल में निषाद बिरादरी के मजबूत वोट बैंक को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों में दिग्गज चेहरे नजर आते है। जब कौड़ीराम विधान सभा क्षेत्र में गौरी देवी विधायक थीं और अपने पति रवींद्र सिंह के यश और अपनी उपस्थिति के बल पर अपराजेय मानी जाती थी। उन्हें कांग्रेस से निषाद बिरादरी के लालचंद निषाद ने पराजित किया और गोरखपुर के पहले निषाद विधायक बनने का गौरव हासिल किया था। निषाद राजनीति का उभार जमुना निषाद के दखल के बाद माने जाना लगा। नब्बे के दशक में जमुना निषाद तब सुर्खियों में आए जब उनकी गिनती ब्रहमलीन महंत अवेद्यनाथ के करीबी के रूप में होने लगी। हलांकि बदले राजनीतिक परिदृश्य में जमुना निषाद गोरक्षपीठ के विरोध में खड़े हो गए। निषाद बिरादरी में आए राजनीतिक चेतना के बल पर सपा के टिकट पर जमुना निषाद ने लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी। सबसे कम अंतर 7339 वोट से योगी को जीत वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में मिली। निषाद राजनीति में निर्विवाद अगुवा बनने के खेल में ही जमुना निषाद की बसपा सरकार में मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। बलात्कार पीडि़ता की पैरवी में पहुंचे जमुना निषाद के काफिले से चली गोली से महराजगंज कोतवाली के सिपाही कृष्णानंद राय की मौत के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी थी। कसरवल कांड के बाद सुर्खियों में आए डा. संजय निषाद इस बार गोरखपुर ग्रामीण से ताल ठोक रहे हैं।