Sunday, 05 February 2017 07:35 PM
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(चौधरी सलमान नदवी की क़लम से)
परिन्दे भी नहीं रहते पराए आशियानों में,
हमारी उम्र गुज़री है किराए के मकानों में।
कमोबेश ऐसा ही कुछ हाल हिन्दुस्तान के मुसलमानों का है।
आज़ादी के बाद से अब तक 70 साल गुज़र जाने के बावजूद हिन्दुस्तान के मुसलमानों का कोई सियासी मसकन (ठिकाना) नहीं है।
जब पूरे हिन्दुस्तान का यही हाल है तो सबसे ज़्यादा आबादी वाला सूबा उत्तर प्रदेश भला इससे कैसे अछूता रह सकता है,
उत्तर प्रदेश में भी आज़ादी के बाद लगभग 40 सालों तक मुसलमानों ने कांग्रेस और उस जैसी दूसरी नाम निहाद सेक्युलर पार्टियों का दामन थामे रखा,
लेकिन उसके बाद जैसे ही बाबरी मस्जिद की बुनियाद कमज़ोर हुई वैसे ही मुलायम सिंह यादव ने मुल्ला बन कर समाजवादी पार्टी की बुनियाद को मज़बूत करने का काम किया।
उसके बाद मुसलमानों को भाजपा का डर दिखा कर कभी सपा और कभी बसपा उत्तर प्रदेश पर हुकूमत करती रही।
लेकिन सबसे बड़े अफ़सोस की बात है कि जिस नाम निहाद सेक्युलरिज़्म को बचाने के लिए मुसलमान कांग्रेस, सपा और बसपा सरीखी पार्टियों को इक़्तिदार की कुर्सियां सौंपता रहा उन्होंने मुसलमानों के लिए कुछ किया ही नहीं,
अलबत्ता इन पार्टियों की अनदेखी और तोताचश्मी की वजह से उत्तर प्रदेश का मुसलमान सियासी, समाजी, मआशी और तअलीमी मैदान में पिछड़ता ही चला गया,
यहां तक कि सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमीशन के मुताबिक़ हिन्दुस्तान के मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है।
मुसलमानों की पस्मान्दगी की अहम वजह सियासत से दूरी है,
या यूं कहें कि मुसलमानों ने सियासी क़यादत की तरफ ध्यान नहीं दिया और नाम निहाद सेक्युलर पार्टियों और नाम निहाद मसीहाओं के बहकावे में आ कर सिर्फ दरियाँ बिछाता और कुर्सियाँ पोछता रहा।
इसी तरह 70 सालों से सभी पार्टियों ने मुसलमानों का इस्तेहसाल ही किया है।
लेकिन बस अब और नहीं!
अब बहुत हुआ!
अब हिन्दुस्तान के मुसलमानों के पास 'बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी' की शक्ल में एक बेबाक, बेख़ौफ़, बेहतरीन क़ाएद मौजूद है।
मौजूदा वक़्त में उत्तर प्रदेश में इलेक्शन है,
मुसलमानों के पास अपनी क़यादत को मज़बूत करने का एक बेहतरीन मौक़ा है।
ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन ने चुनिंदा सीटों पर अपने नुमाइंदों को टिकट दे कर उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को सियासी ताक़त देने की तरफ पहला क़दम बढ़ाया है।
मुसलमानों की तमामतर पस्मान्दगियों को दूर करने का रास्ता सियासी रास्ते से हो कर गुज़रता है।
जब मुसलमान ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन को मज़बूत कर अपनी सियासी पस्मान्दगी को दूर करेगा तो साथ में मआशी, समाजी और तअलीमी पस्मान्दगी ख़ुद-ब-ख़ुद दूर हो जाएगी।
इसलिए बेहद जरुरी है कि जिन सीटों पर ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन के नुमाइंदे उम्मीदवार हैं वहां के मुसलमान अपना क़ीमती वोट पतंग के निशान पर दें ताकि हमारा आज और आने वाली नस्लों का कल संवर सके।
( लेखक ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन (उ०प्र०) के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हैं)