Thursday, 04 March 2021 5:27
G.A Siddiqui
गुंडा नियंत्रण (संशोधन) विधेयक और सम्पत्ति विरूपण निवारण विधेयक: विरोधियों (लोकतांत्रिक आवाजों) के दमन का नया हथियार- रिहाई मंच
सरकारी गुंडागर्दी का नया आधार- रिहाई मंच
लखनऊ 4 मार्च । रिहाई मंच ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधान सभा से पारित करवाए गए उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण (संशोधन) विधेयक और सम्पत्ति विरूपण निवारण विधेयक 2021 को लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध और दमनकारी बताया।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि दोनों विधेयको के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार राज्य को पुलिस स्टेट में बदलते हुए विरोध के स्वर का दमन करना चाहती है। उन्होंने कहा कि गुंडा नियंत्रण (संशोधन) विधेयक के नए प्रावधानों की मंशा किसी भी व्यक्ति पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर न्यायिक निस्तारण से पहले ही अधिक से अधिक समय तक जेल में रखने की है। हालांकि विधेयक विधान परिषद से पारित नहीं हो पाया और प्रवर समिति को भेज दिया गया है लेकिन इससे सरकार की नीति और नीयत को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने अभी पिछले दिनों किसान नेताओं को जिस तरह से गुंडा एक्ट का नोटिस दिया था उससे इसके लागू करने के तरीकों पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।
राजीव यादव ने कहा कि सम्पत्ति विरूपण निवारण कानून 2021 विधान सभा के बाद विधान परिषद से भी पारित करवाया जा चुका है। लेकिन पूर्व की भांति इसके दुरुपयोग की प्रबल संभावना है। विगत में सीएए/एनआरसी विरोधी आंदोलनों के दौरान विरोध के स्वर का दमन करने के लिए साजिश के तहत पहले अराजक तत्वों को हिंसा व तोड़फोड़ करने दिया गया और बाद में उसी की आड़ में शांतिपूर्ण आंदालनकारियों को प्रताड़ित किया गया। उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों को प्रताड़ित करने का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार नुकसान की भरपाई के लिए मार्च 2020 में अध्यादेश के माध्यम से कानून लेकर आई थी और उसे दिसम्बर 2019 की घटनाओं पर भी लागू करने का प्रयास किया था। सरकार का यह कदम बदले की भावना से उठाया गया था।
राजीव ने आरोप लगाया कि इसी तरह किसान ट्रैक्टर मार्च के दौरान दिल्ली में लालकिले पर होने वाली घटना का आरोप किसानों पर लगाया गया था लेकिन उसके मुख्य आरोपी का सम्बंध भाजपा के शीर्ष नेताओं से निकला। राजीव यादव ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा को कभी सही नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन सम्पत्तियों के नुकसान के लिए कठोर कानून बनाने से पहले निर्दोषों को फंसाए जाने पर पुलिस की जवाबदेही तय होनी चाहिए। तोड़फोड़ करने वाले पुलिस कर्मियों या हिंसा कारित करने वालों के पुलिस के साथ पाए जाने पर पुलिस के खिलाफ पूर्व अनुमति की शर्त लगाए बिना उन्हीं धाराओं में मुकदमा चलाए जाने का प्रावधान किया जाना आवश्यक है।