Friday, 18 June 2021 8:50
G.A Siddiqui
लखनऊ, 18 जून।. रिहाई मंच ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल की रिहाई को लोकतांत्रिक-संवैधानिक मूल्यों की जीत कहा. मंच ने किसान आंदोलन द्वारा भीमा कोरेगांव मामले में राज्य द्वारा फंसाए गए मानवाधिकार नेताओं की रिहाई की मांग का स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक कदम बताया.
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जिस प्रकार जीवित रहने के लिए रोटी की ज़रूरत होती है उसी प्रकार समाज के अंतिम व्यक्ति के गरिमामय जीवन जीने के लिए उसके अधिकारों की गारंटी होना भी आवश्यक है. उन्होंने कहा सरकारों द्वारा आम आदमी के इस अधिकार का अतिक्रमण किया जाता रहा है. खासकर नई आर्थिक नीति के लागू होने के बाद विकास के नाम पर खनिज से भरपूर आदिवासी क्षेत्रों को पूंजीपतियों को आवंटित करने के साथ ही वंचना का शिकार स्थानीय आबादी को जबरन विस्थापित करने के सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के नतीजे में उनकी बस्तियों को जलाने, हत्या, बलात्कार जैसे मानवता के खिलाफ अपराध कारित किए जाने के अनेको उदाहरण मौजूद हैं.
रिहाई मंच नेता रविश आलम ने कहा कि वर्तमान भाजपा सरकार सारी हदें पार करते हुए मानवाधिकार नेताओं को फर्जी मुकदमों में देशद्रोह और यूएपीए की धाराओं में जेलों में कैद कर दिया है. पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता सरकार से कोविड को लेकर सवाल कर रहे हैं तो उन पर मुकदमे दर्ज किए जा रहे और नोटिस भेजे जा रहे हैं. आदिवासी और वंचित समाज के पक्ष में उठने वाली और सरकार से सवाल पूछने वाली आवाज़ों को गैर कानूनी तरीके से खामोश करने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि नागरिकता कानून के विरोध से लेकर सरकार की आलोचना करने वालों तक मानवाधिकार व नागरिक अधिकार नेताओं/कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों और सामान्य जनमानस को जिस तरह से प्रताड़ित किया गया और यूएपीए, एनएसए और राजद्रोह के फर्जी मुकदमें कायम किए गए इससे न केवल मानवाधिकारों की बात करना अपराध बन गया बल्कि भारतीय लोकतंत्र भी कलंकित हुआ है. सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए मॉब लिंचिंग के मामलों पर ना कठोर कार्रवाई कर रही और न ही मुख्यमंत्री इस पर अपनी जुबान खोल रहे. एक समाज के धार्मिक स्थलों को टारगेट किया जा रहा है और टारगेट करने वाले अधिकारियों का प्रमोशन किया जा रहा है.
रिहाई मंच ने कहा कि किसान आंदोलन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को राज्य द्वारा हिंसा का शिकार बनाया गया लेकिन किसानों ने सब कुछ सहन करते हुए अपना आंदोलन जारी रखा. अब यह आंदोलन राज्य के दमन के खिलाफ ऐतिहासिक इबारत लिख रहा है जिसका न केवल स्वागत किया जाना चाहिए बल्कि इसे सशक्त बनाने के लिए हर संभव सहयोग और समर्थन किया जाना चाहिए.