Saturday, 22 October 2016 1:05 pm
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बरेली। तीन तलाक और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर केंद्र सरकार का विरोध और तेज हो गया है। शुक्रवार को सुन्नी सूफी संगठनों ने बाकरगंज स्थित ईदगाह के मैदान में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। संगठनों ने क़ानून आयोग को अपनी सिफारिशों से पहले ली जाने वाली राय इस्लाम के खिलाफ साजिश बताते हुए इसे आरएसएस के एजेंडे पर देश को धकेलने की नियत बताया और संगठनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ शरीयत बचाओ आंदोलन का एलान किया। भारत के सुन्नी उलमा की सबसे बड़ी तंजीम ऑल इण्डिया जमात रज़ा-ए-मुस्तफा बरेली, तंजीम उलमा ए इस्लाम दिल्ली, देश की प्रतिष्ठित रज़ा एकेडमी मुम्बई समेत आधा दर्जन सुन्नी संगठनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
शरीयत में बदलाव मंजूर नहीं
देश के सबसे बड़े मुस्लिम उलेमा संगठन जमात रज़ा-ए-मुस्तफा के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि केंद्र सरकार अगर शरीयत के किसी मामले में दखल देगी तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की इस पहल का उत्तर प्रदेश के चुनाव में राज्य की 25 फीसदी मुस्लिम, 30 फीसदी दलित और सेकुलर हिन्दू भाजपा को जवाब देंगे। मौलाना ने कहा कि जब हर मजहब के लोगों को अपनी निजी संहिताओं, पुस्तकों, आस्था, विश्वास और परम्परा के अनुसार नागरिक क़ानून मानने की आजादी है तो सरकार मुसलमानों के तलाक के मुद्दे के पीछे क्यों पड़ी है? इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्य्क्ष अमित शाह और संघ प्रमुख मोहन भागवत को सिर्फ देश को साम्प्रदायिक स्तर पर बांट कर वोट लेने की बीमारी है। जिसका इलाज उत्तर प्रदेश की जनता 2017 के चुनाव में कर देगी। उन्होंने कहा कि आरएसएस एक समान क़ानून बनाने के बहाने देश के मुसलमानों का ही नहीं बल्कि दलितों, आदिवासियों, जैन, सिख और पारसियों का शोषण कर पुरोहितवाद को स्थापित करना चाहती है।
आरएसएस के एजेंडे पर नहीं चलेगा देश
जमात रज़ा-ए-मुस्तफा के अध्यक्ष और शहर काजी मौलाना असजद रज़ा कादरी ने अध्य्क्षता करते हुए कहा कि भारत के सुन्नी मुसलमान हनफ़ी व्याख्या के अनुसार अपने निजी कानूनों को मानने के लिए राजी हैं। जिन महिलाओं या कई मामलों में पुरुषों को भी तलाक के मसले पर अगर जरूरत हो तो अदालत की शरण लेनी पड़ती हैं और अदालत के फैसले का सम्मान किया जाता है। लेकिन जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आई है वो मुसलमानों के जज्बात से खिलवाड़ कर रही है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि देश को आरएसएस के एजेंडे पर ले जाने की हर कोशिश को नाकाम किया जाएगा। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि संविधान के आर्टिकल 44 को भी बीजेपी और आरएसएस के लोग गलत रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं क्योंकि इसमें विश्वास के आधार पर निजी कानूनों की प्रैक्टिस की छूट दी गयी है।
दरगाह के संदेश को समझे
ऑल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-इस्लाम के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुफ़्ती अशफाक कादरी ने कहा कि बरेली दरगाह में जिम्मेदार लोगों की बैठक में तय हुआ है कि भारत के लॉ कमीशन, क़ानून मंत्रलाय या मोदी सरकार को मुसलमानों के निजी कानूनों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस बहस के बहाने बीजेपी सोचती है कि वो प्रदेश में साम्रदायिक ध्रुवीकरण कर चुनाव जीत लेगी तो ये उसकी गलतफहमी है। मुफ़्ती अशफाक कादरी ने अन्य अल्पसंख्यक जैसे सिख, जैन, पारसियों और आदिवासियों से आह्वान किया कि वो बीजेपी की इस योजना को विफल करने के लिए उनका साथ दे यदि वो आज खामोश रहे तो अगला नम्बर उनका है।
लॉ कमीशन को समय पर राय दें
शरीयत बचाओ आंदोलन को सम्बोधित करते हुए उलेमाओं ने कहा कि लॉ कमीशन ने जो सवाल पूछे हैं उसका समय पर पूरा जवाब दिया जाए क्योंकि बायकॉट करने से समस्या का हल नहीं निकलेगा। सुप्रीम कोर्ट के सायरा बानो केस का हवाला देकर जो सवाल पूछे गए हैं उसमें तीन तलाक का मुद्दा था ही नहीं और इससे रविशंकर प्रसाद एंड कम्पनी पर सवाल उठाना लाजमी है कि जो बहस उन्होंने देश के सामने लाकर रख दी है क्या वह उसका फायदा बीजेपी को यूपी और पंजाब के चुनाव में देना चाहते हैं। उलमाओं ने सभी वर्ग के युवाओं से अपील की हैं कि वह राजनीति को समझे यदि वो ट्रिपल तलाक के बहाने इस्लामी शरीयत के इस निर्णय को आज मान लेंगे तो यह आरएसएस के समान नागरिक संहिता के सपने की शुरुआत है। जिसमें मुसलमानों के बाद जैन, सिख, पारसियों और आदिवासियों का भी नम्बर आएगा।