Sunday, 20 November 2016 01:00 PM
Nawaz Shearwani
मंजर भोपाली से गोरखपुर दैनिक विस्तार लाइन की खास बातचीत
नोटबंदी की हसीं दाल पकाने वाले।
मुझको लगता है कि इस दाल में काला है।
यह शेर मशहूर शायर मंजर भोपाली का है। यहाँ मुशायरे में शिरकत करने आये श्री मंजर ने नोटबंदी, तीन तलाक, समान नागरिक संहिता, मुशायरा, साहित्य, उर्दू सहित तमाम बातों पर बेतकल्लुफी से अपनी बात रखी।
नोटबंदी के सवाल पर कहा कि आने वाला दिन किसी ने नहीं देखा है। हम आने वाले कल पर भरोसा भी नहीं करते हैं। सरकार कहती है कि पुराने नोट बस स्टैंड, एअरपोर्ट, अस्पताल में चलेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। हकीकत कुछ और ही हैं। मैं बंगलौर से नई दिल्ली गया तो एटीएम खराब मिला। मैंने प्रीपेड टिकट लिया। दिल्ली पुलिस के अधीन चलने वाली टैक्सी के ड्राइवर ने पुराने नोट लेने से इंकार कर दिया। वहीं पास में खड़े टैक्सी वाले ने कहा कि बगल में चले जाईये। 2500 रूपए के पुराने नोट के बदले 2000 रूपए के नए नोट मिल जायेंगे। यह तो हाल है।
उन्होंने कहा कि मैंने कल दोस्त से 5000 रूपए उधार लिए। सरकार को करेंसी बंद करनी थी तो छोटी नोट लेकर आते। सरकार ने 500 व 1000 रूपए के नोट बंद करके लोगों को परेशान कर दिया। कोई सिस्टम ही नहीं है। आम आदमी की दिक्कतें बढ़ गयी। जब सरकार का मालूम हैं कि किन लोगों के पास ब्लैकमनी है तो फिर उन पर छापे क्यों नहीं मारते। आज पूरे देश की करेंसी को डंप कर रहे है। करेंसी डंप नहीं होना चाहिए। इस फैसले से सरकार को कोई फायदा नहीं होने वाला है और न ही मंजर भोपाली को कोई फायदा होने वाला है। अब बैंकों में हजारों करोड़ रूपए इकट्ठा कर लिए। अब वह लोन देंगे मकान बनाने सहित अन्य चीजों के लिए। फायदा बैंकों को हुआ है। अब बैंकों से कर्ज लेना पड़ेगा। भविष्य के नजरिए से भी खराब फैसला कहेंगे नोटबंदी को।
तीन तलाक व समान नागरिक संहिता पर कहा कि सरकार को जो भी फैसला लेना है वह कुरआन व हदीस की रोशनी में लें। तीन तलाक का जो आम प्रचलन बताया जा रहा है जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप वगैरह पर तीन तलाक दे दिया ऐसा कुछ नहीं है। अमली जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं है। धर्मगुरूओं को तीन तलाक के मसले पर अवाम को जुमे के खुतबे में जागरूक करना चाहिए। महिलाओं को भी जागरूक करें। हमारें पास कुरआन व हदीस है। इसका सिस्टम है। हम शरीयत में दखल नहीं चाहते।
मंजर भोपाली आज के दौर के मुशायरे पर रंज है। उनका कहना है कि इस दौर में मुशायरे हो रहे हैं ,शायरी नहीं। डायस से शायरी गायब हो गई है। सुबह अखबार की हैडिंग बन रही है, शाम को वो शायरी बन जा रही है। ये शायरी नहीं है। ये गजल नहीं है, गीत नहीं है, किसी को गाली देना या बुरा कहना स्टेटमेंट तो हो सकता है, शायरी नहीं हो सकती है। इसकी वजह यह है कि सियासत हर जेहन, घर , समाज में फैल गई है। किसी के घर में मुलायम, किसी के जेहन में मायवती, राहुल, मोदी बैठ गये है। इसके अलावा हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में कोई सब्जेक्ट बचा नहीं है। न आप शायरी में किसी को बात करता देखेंगे। आप ड्रामे पर बात करते किसी को नहीं देखेंगे। साहित्य की तरफ नई पीढ़ी नहीं आ रही है। फिल्म देख कर आ जाते तो हैं लेकिर स्टोरी पर बात नहीं होती। नई पीढ़ी को अपने मुस्तकबिल देख रहा है। वह जा रहा है कम्पयूटर साइंस, इंजीनियरिंग की तरफ। आज उर्दू छोड़िए हिंदी के हालात खराब है। अभी किसी ने मुझे हिंदी की किताब दी। मैं खुद नहीं समझ पाया कि यह हिंदी है या संस्कृत। कवि सम्मेलन व मुशारा एक रात की कहानी बन गए है। इस पर कोई चर्चा नहीं होती। उर्दू को जड़ से जिंदा रखना पड़ेगा। बुनियादी तौर पर जिंदा रखना पड़ेगा। सारी जिम्मेदारी मदरसों की ही नहीं है। हमारी अपनी भी जिम्मेदारी है। हमारे शायर दोस्त बड़े बड़े शायरों के हाथों में आप न तो उर्दू किताबें ही देखेंगे और न ही उर्दू अखबार। हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। जिम्मेदार संस्थायें व अकादमी भी मुशायरे में घुसे हुये है जबकि उन्हें उर्दू के फरोग के लिए हर जगह संस्थायें, सेमिनार, उर्दू क्लासेज चलाना चाहिए। सरकार बजट दे रही है। करोड़ो का बजट कहां जा रहा है। किसी शायर को अवार्ड मत दीजिए, यश भारती मत दीजिए। हमें जरूरत नहीं है। हमारी जुबान बचाईयें। कोचिंग सेंटर, सेमिनार चलाईये। अन्य जरूरी कदम उठाईये। यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि कवि व मुशायरों के जरिए भाषा की तरक्की नहीं हो रही है।