Friday, 20 September 2019 9:34
G.A Siddiqui
बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की ग्यारवीं बरसी पर संवैधानिक अधिकारों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ रिहाई मंच ने राजधानी में किया सेमिनार
एनआरसी के ज़रिए नागरिकों पर निशाना साध रही है सियासत - बीडी नक़़वी, पूर्व न्यायधीश
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में नज़रबंदी संवैधानिक - रवि नायर
लखनऊ, 19 सितंबर 2019। बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की ग्यारवीं बरसी पर रिहाई मंच ने संवैधानिक अधिकारों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ में रिहाई मंच अध्यक्ष मो० शुऐब की अध्यक्षता में सेमिनार किया गया। सेमिनार बड़े पैमाने पर संविधान में किए जा रहे बदलावों के सवाल पर केंद्रित रहा। कहा गया कि आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए मौजूदा सरकार ने राज्यसभा में 35 दिनों में 32 बिल पास करके पूरे देश में डर का माहौल पैदा कर दिया। सवर्ण आरक्षण, तीन तलाक़, आरटीआई, एनआरसी, यूएपीए, एनआईए, 370, 35A जैसे सवालों पर सदन में विपक्ष की भूमिका की भी आलोचना की गई। यूएपीए के तहत अर्बन नक्सल के नाम पर बुद्धिजीवियों तक को निशाने पर लिया जा रहा है और इस पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत विपक्ष की भूमिका आपराधिक रही। सेमिनार में मुख्य वक्ता पूर्व न्यायधीश बीडी नक़वी पूर्व न्यायधीश बी०डी० नक़वी ने कहा कि मौजूदा सियासत टारगेटिंग पर भरोसा करती है। एनआरसी इसीलिए लाया गया हालांकि यह अलग बात है कि असम में यह इरादा फेल हो गया। मसला असमिया बनाम बंगाली प्रभुत्व का था जिसे हिंदू–मुस्लिम में बदलने की कोशिश हुई। अनुच्छेद 370 और 35A के पीछे भी यही इरादा है।और साउथ एशिया ह्यूमन राट्स डॉक्यूमेंटेशन सेंटर से जुड़े मानवाधिकार नेता रवि नायर,ने कहा कि यह त्रासद विडंबना है कि सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाले देश में नज़रबंदी बाकायदा संविधान में है। दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है। यूएपीए कानून में संशोधन करके उसे सख्त बनाने का काम कांग्रेस ने शुरू किया था और भाजपा ने एक और संशोधन के माध्यम से उसे चरम पर पहुंचा दिया। पूर्व आईजी एसआर दारापुरीने कहा कि असम में एनआरसी की सुनवाई कर रहे अधिकारियों में जिन्होंने अधिक संख्या में एक खास वर्ग के लोगों को नागरिक रजिस्टर में शामिल किया उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया।सेमिनार का संचालन मसीहुद्दीन संजरी ने किया।