-औलाद को इल्म के जेवर से आरास्ता कीजिए : मौलाना अली अहमद
-हजरत मोहम्मद अली बहादुर शाह रहमतुल्लाह अलैह का 100वां तीन रोजा उर्स-ए-पाक शुरू
गोरखपुर। मोहल्ला रहमतनगर स्थित बहादुरिया जामा मस्जिद के निकट हजरत मोहम्मद अली बहादुर शाह रहमतुल्लाह अलैह का 100वां तीन रोजा उर्स-ए-पाक आस्ताने पर शनिवार को शुरू हुआ। इस दौरान भव्य जश्न-ए-ईदमिलादुन्नबी का आयोजन हुआ।
मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए मौलाना खुर्शीदुल इस्लाम किछौछवीं ने कहा कि औलिया इकराम का फैज सभी पर है। बुजुर्गाें की जिदंगी हमारे लिए नमूना है। उस पर अम्ल करके अल्लाह और रसूल की नजदीकी हासिल की जा सकती है। हजरत गौस पाक अब्दुल कादीर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने इस्लाम के पैगाम को फैलाया। पूरी जिदंगी, नबी की पाकीजा सुन्नतों पर अम्ल कर कुर्बें इलाही हासिल किया। उनका पैगाम सभी के लिए है। दिल को अल्लाह के जिक्र से खाली नहीं रखना चाहिए। हम मुसलमान हैं। हमारा धर्म इस्लाम है,यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है। हमारे नबी सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम का इरशाद है “इल्म का सीखना हर मुसलमान पर अनिवार्य है”। क़ुरआन में वह आयतें जो बुद्धि, ज्ञान तथा सोचने और विचार करने से सम्बन्धित हैं अनुमानतः एक हज़ार की संख्या तक पहुंचती हैं। कुरआन में विभिन्न स्थानों पर अल्लाह ने ज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया हैं। यह ज्ञान है जिसे प्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति जब निकलता है तो उसके लिए स्वर्ग का पथ सरल कर दिया जाता है, फ़रिश्ते उसके रास्ते में अपना पर बिछाते हैं, तालिबे इल्म के लिए धरती और आकाश की प्रत्येक वस्तुयें यहां तक कि मछलियाँ भी समुद्र के पेट में दुआ करती हैं। आलिम को आबिद पर ऐसी प्रधानता प्राप्त है जैसे 14वीं रात के चाँद को सितारों पर प्रधानता हासिल है। इस्लाम अमल से पहले ज्ञान प्राप्त करने का आदेश देता है।
उन्होंने कहा एक पढ़ी लिखी मां की गोद से ही पढ़ी लिखी औलाद समाज को मिल सकती है। मां की गोद बच्चे के लिए सबसे पहला स्कूल है। इसलिए उसका पढ़ा लिखा होना बेहद जरूरी है। किसी दानिश्मंद का कौल है कि एक औरत को तालीम दे देना एक यूनिवर्सिटी खोल देने के बराबर है।
उन्होंने आगे हैं कि इस्लामी विद्वानों ने इल्म सीखने और इसके प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी कोशिशें सर्फ़ कर दीं। इस्लामी विद्वानों ने जिस प्रकार इस रास्ते में परिश्रम किया दुनिया के इतिहास में इसका कोई उदाहरण नहीं मिलता। आज युवा इंटरनेट पर अपना बहुमूल्य समय नष्ट कर देते हैं, कितने दुनिया कमाने में अपना पूरा समय लगाते हैं, कितने मनोरंजन में अपना बहुत सारा समय बर्बाद करते हैं, लेकिन जब इल्म सीखने की बारी आती है तो कहते हैं कि हमारे पास समय नहीं विदित है कि ऐसे लोग ज्ञान में वृद्धि नहीं ला सकते, हर व्यक्ति को इल्म सीखने के लिए दिन या रात में कुछ घंटे अवश्य निकालना चाहिए। इल्म हासिल करने के लिए धैर्य और सहनशीलता से काम लेना होगा, दिल को मनाना होगा, इच्छाओं को मारना होगा।
विशिष्ट अतिथि इमाम मौलाना अली अहमद शाद बस्तवीं ने कहा कि अपनी औलाद को इल्म के जेवर से आरास्ता (सजाईए) कीजिए। इस्लामी तहजीब में वहीं सच्चा मुसलमान हैं जो कुरआन पाक सीखे और सिखाए जिससे खुदा की मार्फरत हासिल हो। नबी करीम ने हदीस में इल्म हासिल करने पर जोर दिया है।सबसे अफजल इल्म कुरआन पाक और हदीस और दीन का इल्म है। इसके बगैर कोई मुसलमान हकीकी मुसलमान नहीं बन सकता। नबी-ए-पाक ने जब मस्जिदे नबवी की तामीर की तो उसके साथ तालीम के लिए चबूतरा तामीर फरमाया जिस पर बैठकर सहाबा इल्मे दीन सीखते थे और जिंदगी गुजारने के लिए आप से तहजीब और तमद्दुन की बात मालूम करते थे। हालांकि मस्जिदे नबवी की तामीर का दौर आप और आपके सहाबा पर आर्थिक तंगी का जमाना था, पेट पर पत्थर बांधे हुए होते थे फिर भी उस वक्त मस्जिद और चबूतरा बनाते अल्लाह के नबी ने मुसलमानों को यह तालीम दे दी है कि मुसलमान भूका प्यासा रह सकता है मगर जैसे नमाज से दूर नहीं हो सकता उसी तरह इल्म हासिल करने से भी दूर नहीं रह सकता, जैसे नमाज फर्ज है उसी तरह इल्म हासिल करना भी फर्ज है। जैसा कि फरमाया गया है कि अगर इल्म के लिए तुम्हें चीन भी जाना पड़े और दूर जाना पड़े तो हर हालत में इल्म हासिल करो। इल्म से दूरी या इल्म वालों से बुग्ज और पढ़ने लिखने से दूरी इंसान को हलाकत तक पहुंचा देती है इल्म पैगम्बरों की मीरास और माल कुफ्फार फिरऔन और कारून की मिरास है।
उन्होंने कहा कि माडर्न तालीम हासिल करने से पहले अपने बच्चों को कुरआन पढ़ना सिखाएं, दीन की जरूरी और अहम बातें सिखाएं रहन सहन के आदाब, बड़ो के साथ अदब व एहतराम का सुलूक, छोटो से प्यार से पेश आना, जरूरी तहजीब और तर्बियत देना जरूरी है। औलाद का हक है कि उनकी अच्छी तालीम व तर्बियत का इंतजाम किया जाए। पैगम्बरे इस्लाम ने आज से चौदह सौ साल पहले वाजेह फरमा दिया कि मां-बाप की तरफ से औलाद को सबसे अजीम तोहफा उनकी अच्छी तालीम और तर्बियत है। यही उनके लिए दीन और दुनिया दोनों एतबार से अच्छी नेमत है। बाकी सारी चीजें फानी हैं और सानवी दर्जा रखती हैं। इसलिए अपनी औलाद को पढ़ाइए और मेहनत करके पढ़ाइए। एक वक्त भूके रहकर पढ़ाना पढ़े तो भूके रहकर पढ़ाइए। हर तकलीफ, मशक्कत व जद्दोजेहद को बर्दाश्त करके अपनी औलाद को इल्म के जेवर से आरास्ता कीजिए ताकि अल्लाह के पास जवाबदेही आसान हो।
उन्होंने कहा दौलत से दिल में अंधेरा होता है और इल्म से दिल को रौशनी मिलती है।यह समझना जरूरी है कि इस्लाम ने दीनी और दुनियावी इल्म की कोई तकसीम नहीं की है। हर किस्म का इल्म और हुनर और हर फन मुसलमानों को हासिल करना चाहिए। जिससे खुदा की मार्फरत हासिल हो।आदमी को अच्छे काम करने में मदद मिले जिससे लोगों के हुकूक का पता चले। इस्लामी तहजीब और तमद्दुन मालूम हो और हर वह इल्म हासिल करे जिससे हलाल रोजी हासिल करने में मदद मिले। मुसलमान किसी भी तालीम के शोबे में पीछे रहे यह अल्लाह के नबी को पसंद नहीं है। आप ने मुख्तलिफ पेशे सीखने का हुक्म दिया और हौसला अफजाई फरमाई। मुख्तलिफ जबानों के सीखने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि हजरत गौस पाक को अल्लाह ने औलिया इकराम का सुल्तान बना दिया। औलिया इकराम की फेहरिस्त में आप को गौसुल आजम के नाम से याद किया जाता है। औलिया की दर से कोई मायूस नहीं जाता है। उन्होंने नात पढ़ी गर मदीनें से दूर रहते है। इश्क अहमद में चूर रहते है। जिस जगह जिक्र उनका होता है। वो यकीनन जरूर रहते है।
समाप्ति पर सलातो सलाम पढ़ा गया दुआ मांगी गयी व शीरीनी तकसीम की गयी। इसके बाद नात रईस अनवर, कुर्बान अली, इदरीश अहमद ने पढ़ी। अध्यक्षता अली मजहर शाह ने किया।
इस मौके पर अली जफर शाह, अली सफदर शाह, अली अंसार शाह, अली यावर शाह, राजू, अली नुसरत शाह, अली मुजफ्फर शाह, अली अख्तर शाह, अली गजनफर शाह, तौसीफ अहमद, सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
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1 जनवरी के कार्यक्रम
बाद नमाज फज्र कुरआन ख्वानी व गुलपोशी होगी। रात 8.30 बजे रहमतनगर के रहमतुल्लाह के यहां से शान के साथ चादर का जुलूस निकाला जायेगा। आस्ताने पर यह समाप्त होगा।
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2 जनवरी के कार्यक्रम
सुबह कव्वाली से कार्यक्रम का आगाज होगा। दोपहर को लंगर तकसीम होगा। असर बाद कुल शरीफ व दुआ होगा।