Tuesday, 28 April 2020 10:26
G.A Siddiqui
-गाजीपुर के डीएम बताएं कि अजान की अनुमति का उन्हें निर्देश नहीं दिया गया तो आखिर पाबन्दी का आदेश किसने उन्हें दिया
-सरकार बताए कि अगर उसने अज़ान पर पाबंदी नहीं लगाई तो किसके आदेश पर रोक रहा है प्रशासन- रिहाई मंच
-महामारी में यह बीमारी कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक
-कोरोना से तो अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वो कानून-संविधान पढ़े पर डीएम-एसपी को जरुर पढ़ना चाहिए
-यह संयोग नहीं कि लॉक डाउन में सबसे अधिक दलित-मुस्लिम हुए पुलिसिया हिंसा के शिकार- रिहाई मंच
-बिना किसी शासनादेश के मनमानी से मौलिक अधिकारों का हो रहा है खुला उल्लंघन
लखनऊ 27 अप्रैल 2020। रिहाई मंच ने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में सूबे में जिस तरह से अजान पर पाबन्दी तो कहीं तबलीग के लोगों पर ईनाम घोषित किया जा रहा है और गोरखपुर के बनकटा में मस्जिद में हमला किया गया वह साफ करता है कि यह सत्ता के संरक्षण में हो रहा है। गाजीपुर के जिलाधिकारी जिन्होंने अजान पर पाबंदी लगाई वे अब यह कह रहे हैं की हमें सरकार की ओर से अज़ान की अनुमति दिए जाने का कोई निर्देश नहीं है, जिसके चलते बैन लगाया है। मंच ने गाजीपुर के डीएम से सवाल किया की अज़ान की अनुमति का उन्हें निर्देश नहीं दिया गया तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि किसके आदेश पर पाबन्दी लगाई। रिहाई मंच ने पुलिस के अजान सम्बन्धी नोटिस पर क़हा की यह संयोग नहीं है बल्कि प्रायोजित तरीके से संघ निर्देशित कार्रवाई को प्रशासन द्वारा लागू करवाया जा रहा है। मंच ने गाजीपुर के बाद फरुखाबाद, कन्नौज, जौनपुर और अलीगढ में अजान पर रोक की कोशिश को भाजपा का एक और साम्प्रदायिक प्रयोग करार दिया है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने सलेमपुर भाजपा सांसद रविंदर कुशवाहा की अपील जिसमें कोई भी जो व्यक्ति तब्लीकि जमात से जुड़ा हो अथवा विदेश की यात्रा करके आया हो चाहे वो कोरोना संदिग्ध किसी भी धर्म सम्प्रदाय का हो ऐसे व्यक्ति की सूचना देने पर ग्यारह हजार रुपया ईनाम को उनकी साम्प्रदायिक मानसिकता की उपज बताया है।
मुहम्मद शुऐब ने कहा कि भाजपा सांसद ने 11,000 ₹ के इनाम की जो घोषणा की है ठीक ऐसी ही घोषणा आजमगढ़ के एसपी, जौनपुर के डीएम और कानपुर के डीएम ने भी की थी और बागपत में तो कोरोना संदिग्ध के नाम पर पोस्टर भी लगवाए गए। यह घोषणाएं संयोग नहीं हैं। माना कि भाजपा सांसद को संविधान का ज्ञान नहीं होगा पर प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं होगा ऐसा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के थाली पीटने के आह्वान पर पीलीभीत के डीएम का सड़क पर जुलूस के साथ जश्न मनाते वीडियो वायरल हुआ हालांकि उस पर प्रशासन ने स्प्ष्टीकरण दिया पर ऐसा नहीं की हम उनकी ऐसी राजनीति से अनिभिज्ञ है।
रिहाई मंच नेता गुफरान सिद्दीकी बताते हैं कि राजधानी लखनऊ में नरही क्षेत्र में अजान न दिए जाने को पुलिस ने मस्जिद के जिम्मेदारों से कहा। अलीगढ़ जिले के इगलास तहसील के कस्बा गोरर्ई में पुलिस ने अज़ान देने की मनाही की। मछली शहर, जौनपुर में थाना पंवरा के मोहम्मद शाह आलम, सराय बिका और मोहम्मद अशरार, मरगहना ने उपजिलाधिकारी मछली शहर को 26 अप्रैल को शिकायती पत्र लिखकर कहा कि कल थाना पंवरा के एसआई महोदय द्वारा मस्जिदों में जाकर जिम्मेदार लोगों से अजान देने से मना करवा दिया।
गौरतलब है कि जौनपुर के डीएम ने कुछ दिनों पहले कहा था कि जमात में शामिल कोई व्यक्ति अगर कहीं छिपा है तो वो उसकी जानकारी देने वाले को 5100 ₹ नकद इनाम देंगे और यह भी कहा की अगर कोई सूचना नहीं देगा तो उसके खिलाफ भी कठोर कार्रवाई होगी। यह घोषणाएं साफ करती हैं की अज़ान पर रोक सिर्फ किसी चौकी इंचार्ज या दरोगा की मनमर्जी है ऐसा बिल्कुल नहीं।
रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी जनपद फर्रुखबाद के मऊ दरवाजा के प्रभारी निरीक्षक जय प्रकाश शर्मा के नाम से एक आदेश का जिक्र करते हुए कहते हैं कि यह कैसे संभव है की गाजीपुर-जौनपुर से सैकड़ों किलोमीटर दूर फर्रुखबाद के डीएम-दरोगा वही सोच रहे जो गाजीपुर के। इस महामारी में ये बीमारी कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक है। कोरोना से तो अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वो कानून-संविधान पढ़े पर डीएम-एसपी को जरुर पढ़ना चाहिए। यह संयोग नहीं कि इस लॉक डाउन में सबसे अधिक दलित-मुस्लिम पुलिसिया हिंसा के शिकार हुए।
रिहाई मंच नेता ने कहा की मऊ दरवाजा के प्रभारी निरीक्षक आदेश में कहते हैं की 25/4/2020 से प्रारंभ हो रहे माह-ए-रमज़ान माह में कोरोना वैश्विक महामारी के संक्रमण, लाकडाउन व धारा 144 सीआरपीसी को दृष्टिगत रखते हुए श्रीमान जिलाधिकारी महोदय द्वारा किसी मस्जिदों में नमाज/अजान नहीं होगी। यह दिलचस्प है कि अज़ान की मनाही करने वाले आदेश में कहा जा रहा है कि जिलाधिकारी महोदय द्वारा किसी मस्जिदों में नमाज/अजान नहीं होगी।
यह एक वाक्य त्रुटि है पर यह भी साफ करती है कि बिना किसी शासनादेश के अपनी मनमानी से संविधान-कानून को ताक पर रखकर मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।