Friday, 13 April 2018 07:45 PM
Chaudhary Salman Nadwi
(चौधरी सलमान नदवी की क़लम से)
"बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ"
ये वो नारा है जो केंद्र की मोदी सरकार ने कुछ सालों पहले ईजाद किया था,
कारण था 'कन्या भ्रूण हत्या' पर रोक लगाना,
लिखने और कहने में तो ये शब्द बड़ा आसान सा लगता है, पर सही मायनों में अगर ग़ौर किया जाए तो बड़ा ही दुःखद और शर्मनाक है,
क्योंकि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ स्त्री की विभिन्न देवियों के रूप में पूजा तो की जाती है पर कोख में आते ही मार दी जाती है,
और अगर किसी तरह उसने जन्म ले भी लिया तो वो कब तक दरिन्दों की हवस से बच कर जी पाएगी कहा नहीं जा सकता।
दुधमुंही अबोध बच्ची हो या बूढ़ी औरत समाज की विकृत मानसिकता के दरिन्दों से बच पाना लगभग असंभव है।
ऐसे लोग हर वर्ग और समाज में हैं जो स्त्री जाति को केवल उपभोग की वस्तु समझते हैं,
चाहे वो दैनिक मज़दूरी करने और फुटपाथ पे सोने वाला तबक़ा हो,
सत्ता का सुख भोगने वाला सांसद / विधायक हो,
कारपोरेट जगत का बड़ा व्यवसायी हो,
किसी आध्यात्मिक आश्रम का धर्मगुरु हो या ख़ुद को सभ्य समाज कहने वाला पढ़ा-लिखा तबक़ा हो।
पिछले कुछ समय में हुई बलात्कार की घटनाओं पर नज़र डालें तो सभी वर्गों का घिनौना चेहरा सामने आ जाता है,
चाहे वो दिल्ली में मज़दूर तबके द्वारा किया गया निर्भया बलात्कार कांड हो, आशाराम और रामरहीम जैसे बाबाओं द्वारा किये गए दुष्कर्म हों, उन्नाव के विधायक द्वारा नाबालिग़ का बलात्कार हो या कठुआ में एक 8 साल की मासूम बच्ची आसिफ़ा का बलात्कार और हत्या का मामला हो।
आसिफ़ा के मामले में बलात्कार और हत्या किया जाना जितना दुःखद पहलू है उतना ही दुःखद पहलू मंदिर में बंधक बना कर ड्रग्स दे कर लगातार दरिंदगी करना है,
हवस के भूखे उन दरिन्दों को अगर उस मासूम पर दया नहीं आई तो क्या उस भगवान का डर भी नहीं लगा जिसके मंदिर में ये घिनौना काम कर रहे थे?
उस से भी ज़्यादा शर्मनाक और देश का सर झुका देने वाली बात ये कि उन बलात्कारियों के पक्ष में रैली निकाली जाती है जिसमें तिरंगा ले कर 'जय श्रीराम' के नारे लगा कर बलात्कारियों को बचाने की कोशिश की जाती है,
क्या अब बलात्कार का भी धर्म है?
क्या सज़ा देने से पहले ये देखा जाएगा कि पीड़िता का धर्म क्या है?
उन्नाव सामूहिक बलात्कार मामले में जिस तरह से शासन - प्रशासन ने कार्रवाई में हीला-हवाली की 10 माह से पीड़िता सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक के विरुद्ध कार्रवाई की मांग करती रही और लेकिन सरकार बलात्कारी विधायक को संरक्षण देती रही।
पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत होने के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा तब बलात्कारी विधायक पर कार्रवाई की गई।
इन सबके बीच ये सवाल उठना लाज़मी है कि क्या शासन,प्रशासन और समाज इतना संवेदनहीन हो चुका है कि पीड़ितों की पीड़ा भी नहीं महसूस कर सकता?
(लेखक ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन उ०प्र० के राज्य कार्यसमिति सदस्य हैं)