Monday, 21 November 2016 12:55pm
admin
चौधरी सलमान नदवी की क़लम से:-
आख़िर वही हुआ न जिसका डर था,
मुसलमानों की आपसी इख्तिलाफ़ात और खोखले इत्तिहाद की वजह से पहले डॉ० ज़ाकिर नाइक की संस्था 'इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन' पर संघी सरकार ने प्रतिबन्ध लगाया और अब संस्था के दफ्तरों पर NIA के छापे मारे गए।
एक तरफ भाजपा के मंत्री की गाड़ी से 91 लाख रूपए बरामद हुए तो उस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया,
और डॉ० ज़ाकिर नाइक के 12 दफ्तरों में से कुल मिलाकर 12 लाख रूपए निकले तो उन्हें शक की निगाह से देखा जा रहा है।
इतनी बड़ी संस्था से अगर 12 करोड़ भी बरामद होते तो कोई बड़ी बात नहीं थी,
क्योंकि IRF अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक और सामाजिक काम करती है।
दूसरी तरफ उन्हें भगोड़े के रूप में प्रचारित किया जा रहा है हालाँकि डॉ० ज़ाकिर नाइक अनिवासी भारतीय (NRI) हैं।
दरअसल सरकार के पास बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को जेल में ठूंसने के लिए सिमी,जैश,लश्कर जैसे नाम पुराने हो गए थे,
इसलिए अब लोगों को IRF के नाम पर प्रताड़ित किया जाएगा,
गिरफ्तार किया जाएगा,
छापे मारे जाएंगे,
मुक़दमे चलेंगे,
और नतीजा वही होगा जो अब तक होता चला आया है।
या तो ऐसे लोग उम्र के आख़िरी पड़ाव में बाइज़्ज़त बरी हो जाएंगे या इनकाउंटर के नाम पर मार दिए जाएंगे।
लेकिन बड़े शर्म और अफ़सोस की बात तो ये है कि कोर्ट का फ़ैसला कुछ भी उससे पहले ही दोस्त-अहबाब, नातेदार-रिश्तेदार सभी मुल्ज़िम को मुजरिम के नज़रिये से देखते हैं,
इसमें सबसे बड़ा हाथ मीडिया वालों का होता है जो बिना अपराध सिद्ध हुए मुलज़िमों को 'आतंकवादी' घोषित कर देते हैं।
जबकि इसके उलट मीडिया कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा और असीमानंद जैसे लोगों को नायक की तरह पेश करती है।
और आतंकवाद के इलज़ाम साबित होने के बाद भी मीडिया इन्हें आतंकी नहीं कहती।
मीडिया के इस दोगले रवैये के पीछे सबसे बड़ा हाथ सरकार का होता है क्योंकि सत्ता में बैठे लोग संविधान के अनुसार नहीं अपनी सोच के अनुसार देश चलाते हैं।
ये मानसिकता देश के लिए बहुत ही घातक है।
अब भी समय है,
देश के सभी मुसलमानों को मिलकर सरकार के ऐसे फैसलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी होगी वरना वो दिन दूर नहीं जब सारी मुस्लिम संस्थाएं आतंकी और देशद्रोही घोषित हो जाएंगी।
(लेखक ऑल इण्डिया मुस्लिम मूवमेंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)