Sunday, 11 November 2018 12:41
G.A Siddiqui
मुश्ताक़ महबूब खान
सिद्धार्थनगर। मौलाना अबुल कलाम आजाद स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने । उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्रनीति का मार्गदर्शन किया । शिक्षामंत्री रहते हुए उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की । ‘भारतीय औद्योगिक संस्थान, अर्थात् आई.आई.टी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना का श्रेय उन्ही को जाता है । संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी की स्थापना उन्ही के कार्यकाल में की गई । उनके द्वारा स्थापित भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद् आज कला, संस्कृति और साहित्य के विकास और संवर्धन के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्था के रुप में विख्यात है । इसकी शाखाएं देश के प्रत्येक बड़े शहर में सफलता पूर्वक कार्य कर रही है और देश तथा विदेश में सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने में प्रयासरत हैं ।
मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था । वे एक पक्के राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी थे । अंग्रेजी शासन के दौरान उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा । उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर अंग्रेजी शासन का विरोध किया। उन्होंने अपनी एक साप्ताहिक पत्रिका ‘अल-हिलाल’ में हिन्दू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों का प्रचार-प्रसार किया। भारत विभाजन के समय भड़के हिन्दू-मुस्लिम दंगों के दौरान मौलाना आजाद ने हिंसा प्रभावित बंगाल, बिहार, असम और पंजाब राज्यों का दौरा किया और वहां शरणार्थी शिविरों में रसद आपूर्ति और सुरक्षा का बंदोबस्त किया । मौलाना आजाद हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर और भारत विभाजन के घोर विरोधी थे । वे प्रचंड विद्वान और शिक्षाविद् होने के साथ-साथ दूर-दृष्टा भी थे ।
मौलाना आज़ाद के लिए स्वतंत्रता से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण थी राष्ट्र की एकता. साल 1923 में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने कहा, ''आज अगर कोई देवी स्वर्ग से उतरकर भी यह कहे कि वह हमें हिंदू-मुस्लिम एकता की कीमत पर 24 घंटे के भीतर स्वतंत्रता दे देगी, तो मैं ऐसी स्वतंत्रता को त्यागना बेहतर समझूंगा. स्वतंत्रता मिलने में होने वाली देरी से हमें थोड़ा नुकसान तो ज़रूर होगा लेकिन अगर हमारी एकता टूट गई तो इससे पूरी मानवता का नुकसान होगा.''
एक ऐसे दौर में जब राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक पहचान को धर्म के साथ जोड़कर देखा जा रहा था, उस समय मौलाना आज़ाद एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना कर रहे थे जहां धर्म, जाति, सम्प्रदाय और लिंग किसी के अधिकारों में आड़े न आने पाए।
आपको ये याद रखना चाहिए दुनिया मे हर जिम्मेदारी के तकाजे हैं और वो तकाजे पूरे करने पड़ते हैं
"दुनियाँ में ठोकरे उन्ही को लगती हैं की जो चलते हैं, जो पावँ तोड़कर बैठ जाते हैं उन्हें ठोकरे कभी नही लगती।
गिरते वहीं है कि जो दौड़ेंगे, कांटें उन्ही के तलवे में चुभते हैं कि जो दौड़ते हैं।"
जब तक कि आजादी हमारे हाथ न थी आपके मुल्क का क्या हाल था वो अपने किस्मत का मालिक न था उसकी किस्मत दूसरों के हाथों में था, आपका अमन भी आपके हाथ न था आपके बेअमनी भी आपके कब्ज़े में न थी। जब कभी मुल्क में बदअमनी होती थी तो आप अपने तरफ नही देखते थे आप उनके तरफ देखते थे जब आपको कोई परेशानी होती थी आप मजबूर होते थे कि अपना हाथ बढ़ाए, लेकिन आज वो नही है आप अपनी किस्मत के खुद मालिक हैं अगर आप मालिक है मैदान में खड़े हैं ये याद रखिये
तो तरह तरह के आजमाईश पेश आइयेंगी, कोई भी नही चाहता कि अपने को आजमाईश में डाले कोई भी नही चाहता गमों और दुखों में अपने को डाले।
लेकिन ने ज़िम्मेदारी का बोझ उठाया है तो तरह तरह की परेशानियां पेश आएँगी, अगर हम मैदान में दौड़ रहें हैं तो कदम कदम पर हमें ठोकरों से दो-चार होना पड़ेगा उससे हमें घबराना नही चाहिए उकताना नही चाहिए। मर्द बनकर उन तमाम जिम्मेदारीयों को उठाना चाहिए उन परेशानियों का मुकाबला करना चाहिए। अगर ज़िन्दा इंसान है तो उसके रागों में ज़िन्दा और गर्म खून दौड़ रहा है तब उसके लिए बीमारियां भी है ठोकरे भी है गिबते भी हैं हर के परेशानियां भी है, तो जिंदगी का मायने भी यही है हम बोझ उठाये, बोझ इस तरह न उठाये कि घबराए हुए उठाये मर्दों की तरह हिम्मत के सात उठाये।
मौलाना आज़ाद ने दिल्ली जामा मस्जिद से खड़े होकर अपने आखरी तक़रीर में जो बातें कही थी उससे हमे सीखना चाहिए।
मौलाना अबुल कलाम आजाद के यौमे पैदाईश और राष्ट्रीय शिक्षा दिवस की तहेदिल से मुबारकबाद।