Monday, 05 December 2016 10:20 PM
Nawaz Shearwani
गोरखपुर। इलाहाबाद के हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस कलीमुल्लाह खां ने मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को ’वल्र्ड लिटरेचर’ बतातें हुए कहा कि मुंशी जी ने आम आदमी के दुख दर्द और उनकी समस्याओं को पुरजोर तरीके से सामने लाया है बल्कि स्वराज्य की अवधारणा को पेश करके जेहनों को आजाद करने पर जोर दिया। उनका कहना था कि मुल्क में एकता व अखंडता को कायम रखना हिंदुस्तान की तरक्की के लिए बहुत जरूरी है। मुंशी जी इसी अवधारणा को लेकर आगे बढ़े थे।
वह आज यहां सेंट एंड्रयूज कालेज के असम्बेली हाॅल में गोरखपुर जाॅब इंफार्मेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर व उर्दू विभाग सेंट एंड्रयूज कालेज के तत्वावधान में आयोजित मुंशी प्रेमचंद शताबदी स्मरण के अन्तर्रगत एक अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार में अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं को किसी एक जबान या वर्ग में बांटना दुरूस्त नहीं है वह जहां हिंदी के बड़े साहित्यकार थे वहीं उर्दू में उनके जैसे कोई अफसाना निगाह आज तक कोई पैदा नहीं हुआ।
डीडीयू के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. केसी लाल ने राष्ट्रीयता का नाम निहाद झंडा बुलंद करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आज जिस राष्ट्रीयता की ओर बात की जा रही हो और एक माहौल बनाया जा रहा है, उन्हें मुंशी प्रेमचंद को पढ़ने की अति आवश्यक है। मुंशी जी राष्ट्रीयता के सच्चे हामी थे। इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब को जोरदार तरीके से उठाया है। उनके यहां हिंदु मुस्लिम एक दूसरे से रचे बसे दिखायी देते है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि आखिर हम किसी ओर जा रहे है जहां हिंदुस्तान की मिली जुली तहजीब खत्म होती नजर आती है।
कुवैत के डा. अफरोज आलम ने कहा कि मुंशी प्रेम चंद ने अपने अफसानों में देहात की जो तस्वीर पेश की हैं, वह आज भी बरकरार है। उनका कहना था कि प्रेमचंद के अफसाने उस वक्त तक जिंदा रहेंगे जब तक देहातों के मसायल हल नहीं हो जाते। उन्होंने सत्ता पर काबिज लोगों की चुटकी लेते हुए कहा कि ’’ ए अमीरे शहर निकलो पूस की एक रात में, शहर की सच्चाईयों से आशनां हो जाओगे।’’
नेपाल के खदीजतुल कुब्रा गल्र्स स्कूल के डायरेक्टर मौलना जाहिद आजाद ने कहा कि प्रेमचंद की व्यक्तित्व उर्दू दुनिया के लिए भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने जिदंगी को जिंदगी के तूफानों को हकीकत पंसदी से देखा और जिंदगी की तहरीरों को अपने तजुर्बाें से आशनां किया और उसे अफसानों का हिस्सा बनाया। वह वाहिद ऐसे रचनाकार है जिसमें आम आदमी के दर्द को न केवल महसूस किया बल्कि अपनी कहानियों के जरिए उसका हल भी पेश किया।
कुवैत के डा. सईद रौशन ने प्रेमचंद के पन्द्रह नाॅवेलों के शोध की रोशनी में बताया कि इंसानियत को बेदार करना और उच्च विचार को पैदा करना मकसद था। प्रेमचंद के साहित्य में सारे हिंदुस्तान की जिंदगी नजर आती हैं
नेपाल उर्दू अकादमी के चेयरमैन डा. साकिब हारूनी ने कहा कि मंुशी प्रेमचंद व फिराक गोरखपुरी ने गोरखपुर की तारीख में चार चांद लगाया।
डीडीयू के हिंदी विभाग के प्रो. अनिल राय ने कहा कि हमारे देश का राष्ट्रवाद रोटी और भूख पर आधारित होगा न कि मजहब और साम्प्रदायिकता पर, क्योंकि अभी तक कोई ऐसा इंसान नहीं बना है जो रोटी के बगैर जिंदा रह सके। उन्होंने कहा कि आज देश की सत्ता जिस राष्ट्रवाद की वकालत कर रही है वह प्रेमचंद्र का राष्ट्रवाद नहीं है। प्रेमंचद के राष्ट्रवाद के केंद्र में आर्थिक प्रश्न है। आज देश की जनता को जिस तरह से इस प्रश्न पर विभम्र पैदा करने की कोशिश की जा रही है उसका जवाब प्रेमचंद ने अपने वैचारिक गद्य में बाखूबी दिया हैं।
वरिष्ठ चिकित्सक व प्रोग्राम के संयोजक डा. अजीज अहमद ने इससे पूर्व तमाम वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि गोरखपुर एक ऐसी सरजमीं है। जहां से फिराक, मजनूं, प्रेमंचद, रेयाज खैराबादी, शमसुर्रहमान फारूकी, मलिक जादा मंजूर अहमद, जफर गोरखपुरी जैसे नामवर शायर व अदीब पैदा हुए और पूरी दुनिया में नाम रौशन किया। उन्होंनेे उर्दू के हवाले से कहा कि हिंदुस्तान को आाजादी तो मिली लेकिन बदकिस्मती से मुल्क तकसीम हो गया जिसकी वजह से उर्दू भाषा का बहुत नुकसान हुआ इसके कद्रदानों की कमी हो गयी।
संचालन करते हुए डा. कलीम कैसर ने प्रेमचंद पर सेमिनार के उद्देश्य को तफसीज से बयान करते हुए इस बात वादा किया कि हम शहर के अदबों और शायरों पर इसी तरह प्रोग्राम करेंगे। इस दौरान अशफाक अहमद द्वारा लिखी गयी पुस्तक का विमोचन भी किया गया। धन्यवाद ज्ञापन कालेज के उर्दू विभागाध्यक्ष डा. साजिद हुसैन ने किया।
इस मौके पर कालेज के प्रिंसिपल डा. जेके लाल, शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह, डा. शमसाद, डा. सुशील राय, आसिम रउफ, अब्दुल्लाह, रोशन सिद्दीकी, अशोक चैधरी, मनोज सिंह के अलावा बड़ी तादाद में छात्र-छात्राएं व शिक्षक उपस्थित रहे।