दरगाह मुबारक खां शहीद पर मुस्लिम महिलाओं का सम्मेलन
गोरखपुर, तालीम, दीनी व दुनियावी फराइज, निकाह, तीन तलाक, दहेज सहित तमाम सामाजिक मुद्दों को लेकर नार्मल स्थित दरगाह हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां रविवार को मुस्लिम महिलाओं का सम्मेलन आयोजित हुआ। ‘ बज़्म-ए-ख्वातीन बनाम इस्लाह-ए-मआशरा कांफ्रेंस ‘ नाम से आयोजित यह कार्यक्रम सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक चला।इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी रही।
सम्मेलन में महिलाओं ने कहा कि शरीअत हमारी जान, शरीअत हमारी शान है। इसे हम खत्म नहीं होने देंगे। मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं की जायेगी। शरीयत अल्लाह व रसूल का दिया हुआ कानून हैं। इसे बदलने का हक किसी को नहीं हैं। सरकार बदल सकती हैं लेकिन शरीयत कानून नहीं बदला जा सकता हैं। सरकार मुस्लिम औरतों की खैरख्वाह नहीं हैं।
इस्लाम अनुयाई महिलाओं को शिक्षा के प्रति प्रेरित व संगठित रहने की प्रेरणा देने मऊ, महराजगंज व गोरखपुर की मुस्लिम धर्मगुरु पहुंचीं थीं। सैकड़ों महिलाओं के मजमे के बीच आलिम-ए-ख्वातीनों (महिला धर्मगुरुओं) ने दीन पर चलने और अल्लाह व रसूल के हुक्म को मानने की नसीहत देते हुए कहा कि महिलाओं को शरीअत और इस्लाम के साये में ही जिंदगी बसर करना चाहिए। इसमें ही उनकी भलाई है। नमाज, रोजा, जकात को पूरी जिम्मेदारी से अदा करें। पर्दे का खास ख्याल रखें।
तलाक कुरआन व हदीस में मौजूद, न मानने वाला इस्लाम से खारिज : महजबीं
मुख्य वक्ता मऊ की मुस्लिम धर्मगुरु महजबीं अख्तरी ने ‘निकाह और तलाक का हक’ पर कहा कि जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं, बहुत से अलग-अलग मिज़ाजों के लोगों के सामने बहुत तरह की समस्याएं आती हैं। जब पति-पत्नि का साथ रहना मुमकिन न हो और दोनों तरफ़ के लोगों के समझाने के बाद भी वे साथ रहने के लिए तैयार न हों तो फिर समाज के लिए एक सेफ़्टी वाल्व की तरह है तलाक़। तलाक़ का आदर्श तरीक़ा कुरआन में है। कुरआन में सूरह निशा, सूरह बकरा में तलाक के बारे में तो हैं ही, कुरआन में एक सूरह का नाम ही ‘सूरा ए तलाक़‘ है। तलाक़ का उससे अच्छा तरीक़ा दुनिया में किसी समाज के पास नहीं है। हिन्दू समाज में तलाक़ का कॉन्सेप्ट ही नहीं था। उसने इस्लाम से लिया है तलाक़ और पुनर्विवाह का सिद्धांत। इस्लाम को अंश रूप में स्वीकारने वाले समाज से हम यही कहते हैं कि इसे आप पूर्णरूपेण ग्रहण कीजिए। तलाक़ का सही तरीक़ा क़ुरआन की ‘सूरा ए तलाक़’ में बता दिया गया है।
शादी के बाद पति-पत्नी में निभती नहीं है तो इस्लामिक तलाक का विकल्प खुला हुआ है, ताकि जिंदगी बोझ न बने, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि तलाक देने के जो तरीके शरीयत में बताये गये हैं यदि तमाम कोशिशें नाकाम हो जाती हैं तो आखिरी फैसला तलाक का है। तलाक के बाद दूसरी शादी को इस्लाम मान्यता देता है। शरीयत के किसी भी नियम का इंकार करने से पुरुष हो या स्त्री इस्लाम से खारिज हो जाते हैं। इस्लामिक लॉ के स्रोत कुरआन, हदीस व फिक्ह हक हैं। हदीस में एक साथ तीन तलाक की सही हदीस मौजूद हैं । सरकार की दिलचस्पी मुस्लिम महिलाओं को हक दिलाने में नहीं शरई कानून में छेड़छाड़ करने में हैं। जिसे मुस्लिम समाज बर्दाश्त नहीं करेगा।
समान नागरिक सहिंता हमें मंजूर नहीं : साफिया
अति विशिष्ट वक्ता घोषी मऊ से आयीं इस्लामिक स्कॉलर साफिया खातून ने कहा कि अंग्रेजों के शासनकाल में मुसलमानों की मांग पर 1937 में शरीयत एक्ट पास किया गया था जिसके अनुसार निकाह, तलाक, खुला, परवरिश का हक, विरासत आदि से संबंधित मामलों में अगर दोनों पक्ष मुसलमान हो तो शरीयत-ए-मुहम्मदी के अनुसार उनका फैसला होगा। चाहे उनके रीति-रिवाज और परंपरा कुछ भी हो, अर्थात यह की इस्लामी शरीयत के कानून को आम रीति-रिवाजों पर प्राथमिकता प्राप्त होगी। भारतीय संविधान के अध्याय 3 में अकीदा धर्म और अंतरात्मा की आजादी और मौलिक अधिकार के तहत स्वीकार किया गया है ।
मुस्लिम कानून महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा करता हैं : ताबिंदा
अति विशिष्ट वक्ता मऊ से आयीं आलिमा ताबिंदा खानम ने कहा कि इस्लामी कानून नैतिक विकास न्याय सामानता कल्याण और संतुलन को बढ़ावा देता है इसमें स्वस्थ परिवार बनाने की क्षमता है जो समाज के अस्तित्व के लिए बुनियादी शर्त है। मुस्लिम कानून महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा करता है यह उनके अधिकारों को स्थापित करता है उनके लिए उनकी व्यापक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है ।
शरीयत की रक्षा के लिए मुस्लिम महिलाएं हर कुर्बानी देने का तैयार : नूरअफशां
विशिष्ट वक्ता गोरखपुर की इस्लामिक विद्वान नूर अफशां ने कहा कि शरीयत के उल्लघंन का मूल कारण मुसलमानों में बड़े पैमाने पर अज्ञानता और इस्लामी मानदंडों के प्रति गंभीर अप्रतिबद्धता है। इस्लाम ने सबसे पहले महिलाओं को अधिकार दिए हैं। इस्लाम से हटकर जो भी कानून बनाया जाएगा वह महिलाओं के खिलाफ ही बनाया जाएगा। इस्लाम ने महिलाओं को निकाह के वक्त रजामंदी का अधिकार दिया है। पिता की विरासत में बेटी का और शौहर की संपत्ति में पत्नी को भी हक दिया है। मुस्लिम महिलाएं इस्लाम की रक्षा के लिए आगे आएंगी। जो लोग मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकार देने की बात कर रहे हैं वे उन विधवाओं को इंसाफ दिलाएं जिनके पति गुजरात के दंगों में मार दिए गए हैं।
इस्लाम लड़कियों को शिक्षा का अधिकार देता हैं : शमीमा
विशिष्ट वक्ता महराजगंज की इस्लामिक स्कॉलर शमीमा खातून ने कहा कि इस्लाम लड़कियों को भी शिक्षा का अधिकार देता है। बेहतर शिक्षा की वजह से ही आज मुस्लिम समाज की लड़कियां विभिन्न ओहदों पर कार्यरत हैं। मुस्लिम लड़कियां समाज के विकास के लिए भी योगदान दे रही हैं। लड़कियां बेहतर शिक्षा से जुड़ सकें व समय के साथ समाजिक व्यवस्था को बेहतर बनाने में अपना योगदान दे सकें, इसके लिए पहल की जा रही है। इस्लाम में औरतों के स्वाभिमान की सुरक्षा सर्वोपरि है। महिलाओं को संगठित होकर समाज, परिवार व समाज के विकास के लिए प्रेरित किया जा रहा है। दहेज मांगने वालों का सामाजिक बायकाट होना चाहिए।
इस्लाम दुनिया का सबसे ज्यादा मकबूल मजहब : शबाना
अध्यक्षता करते हुए गोरखपुर की आलिमा शबाना खातून शम्सी ने कहा कि मजहबे इस्लाम को इंसान ने बड़ी तेजी के साथ कबूल किया। आज इस्लाम दुनिया का सबसे ज्यादा मकबूल मजहब बन गया है।