Saturday, 26 August 2017 02:10PM
Admin
-:चौधरी सलमान नदवी की क़लम से:-
दुनिया को इंसानियत का पाठ पढ़ाने का दावा करने वाले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम जी की ये कैसी इंसानियत है कि सरकार और न्यायपालिका पर दबाव बनाने के लिए 15 वर्ष के बच्चे से लेकर 60 वर्ष के वृद्ध तक 31 लोगों की बलि चढ़ा दी जबकि 250 से ज़्यादा लोग गम्भीर रूप से घायल हैं।
(आंकड़े बढ़ भी सकते हैं)
ये कैसी इंसानियत है कि जो लोग 3 तलाक़ जैसे धार्मिक मुद्दे पर आए फ़ैसले को ये कह कर सही ठहरा रहे थे कि औरतों के साथ इंसाफ हुआ है आज वही लोग एक औरत को इंसाफ मिलने पर इतना उग्र हो गए कि आतंक फैला दिया।
ये दोहरा मापदण्ड नहीं तो और क्या है?
एक तरफ़ डेरा प्रमुख के आशीर्वाद से बनी सरकार है और दूसरी तरफ उग्र समर्थक अगर सरकार ने एहसान के बोझ तले दबे बिना व्यापक क़दम उठाए होते तो धारा 144 लागू होने के बावजूद इतनी बड़ी भीड़ पंचकुला न पहुँचती,
इस बात में कोई शक नहीं कि खट्टर सरकार की मौन सहमति से ही भीड़ एकत्रित हुई।
अगर बाबा ने धन बटोरने के सिवा इंसानियत का कोई काम किया होता तो वो अपने अनुयायियों को सबसे पहले देशभक्ति सिखाते,
सोशल मीडिया पर बाबा राम रहीम के भक्तों की वो धमकी करोड़ों लोग देख चुके हैं जिसमें उन्होंने भारत को नक़्शे से मिटाने की बात कही है,
ये कैसी शिक्षा दी है बाबा ने जिसमें गुरुभक्ति देशभक्ति से भी बड़ी है?
आख़िर बात यहां तक पहुंची कैसे?
ये डेरे और आश्रम जो आए दिन शासन, प्रशासन और न्यायपालिका के सामने चुनौती बन कर खड़े हो जाते हैं क्या किसी भी तरह देश के हितैषी हैं, क्या ये किसी आतंकी संगठन से कम हैं?
कभी आशाराम, कभी रामपाल और अब राम रहीम के समर्थकों ने जो आतंक मचा रखा है वो बिल्कुल पाकिस्तान के जिहादी संगठनों की तरह ही है,
हरियाणा के DGP के अनुसार डेरा समर्थकों के पास से रायफल, पिस्तौल और पेट्रोल बम जैसे घातक हथियार बरामद हुए हैं।
हाई कोर्ट ने खट्टर सरकार को फटकार लगाई है कि राजनैतिक फायदे के लिए सरकार ने प्रदेश को जलने दिया।
क्या राज्य और केंद्र सरकार ने ऐसे बाबाओं के सामने घुटने टेक दिए हैं?
क्या किसी बलात्कारी के समर्थन में इतनी भीड़ का जुटना नैतिक और न्यायसंगत है?
क्या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बन चुके इन कारपोरेट बाबाओं पर नकेल कसना सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है?
आख़िर कब तक सरकारें मासूम लोगों की बलि चढ़ा कर ऐसे बाबाओं के हित साधती रहेंगी?
क्या हमें पड़ोसी देश पाकिस्तान की ग़लतियों से सीख नहीं लेना चाहिए कि वहां की सरकारों और राजनैतिक दलों ने सत्ता सुख भोगने के लिए धार्मिक उन्मादी संगठनों को बढ़ावा दे कर पूरे देश को आतंक की भट्ठी में झोंक दिया।
अब भी समय है
अगर वाक़ई मोदी सरकार देशहितैषी है तो ऐसे उन्मादी संगठनों,आश्रमों और कारपोरेट बाबाओं पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा कर अपनी 'Nation First' की नीति का सबूत दे।
(लेखक ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन उ०प्र० के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य हैं)