Thursday, 23 January 2020 8:33
G.A Siddiqui
नई दिल्ली, 22 जनवरी
नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 144 याचिकाओं पर आज मुख्य न्यायाधीश ए.एस. बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सुनवाई की। अदालत ने इस कानून पर फिलहाल रोक लगाने से यह कहकर इनकार कर दिया कि इस पर पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक बेंच ही कोई राहत दे सकती है, इस मामले में जवाब देने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का और समय दिया गया है। नागरिकता कानून के खिलाफ दर्ज याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस क़ानून को फिलहाल बहाल रखने और केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए जिस तरह चारह सप्ताह की और मोहलत दी है इस पर जमीअत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने गंभीर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमें आशा थी कि कोई सकारात्मक प्रगति होगी। उन्होंने कहा कि अगर
अदालत कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगा देती तो देश भर में इस कानून के पारित होने के बाद भय और आतंक का जो माहौल छाया हुआ है इसमें बड़ी हद तक कमी आ जाती और जगह-जगह हो रहे प्रदर्शन भी बहुत हद तक थम जाते मगर अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ। मौलाना मदनी ने कहा कि देश भर में कड़े विरोध और प्रदर्शन के बाद भी सरकार कह रही है कि क़ानून में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता, इस मामले में देश के सभी न्यायप्रिय लोगों की उम्मीदें और आशाएं देश की सबसे बड़ी अदालत से ही जुड़ी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस काले कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिकाॅर्ड 144 याचिकाएं दाखिल हैं और उन सभी में इस कानून को संविधान विरोधी क़रार दिया गया है और कहा गया है कि चूंकि इस कानून से संविधान के प्रस्तावना की खुला उल्लंघन होता है इसलिए इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत का फैसला सिर आंखों पर लेकिन इससे देश के उन करोड़ों हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई को निराशा हुई है जो पिछले एक महीने से ठंड, ठिठुरन और बारिश में खुले आसमान के नीचे बैठकर इस काले क़ानून के खिलाफ शांतिपूर्ण लेकिन आदर्शपूर्ण विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन सबके बावजूद सरकार तानाशाही व्यवहार अपना कर इस संविधान विरोधी क़ानून को सब पर थोपना चाहती है यही कारण है कि 18 दिसम्बर को उसे जवाब दाखिल करने के लिए जो एक महीने की मोहलत अदालत ने दी थी उसे उसने बर्बाद कर दिया, जबकि उसे आज पूरा हलफ़नामा दाखिल करना चाहिए था, इससे सरकार की मंशा का पता लगाया जा सकता है। उन्होंने एक बार फिर समझाया कि जमीअत उलमा-ए-हिंद का शुरू से यह मानना है कि जिन समस्याओं का समाधान राजनीतिक रूप से न निकले उसके खिलाफ क़ानूनी संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए, कई महत्वपूर्ण मामलों में उसने ऐसा किया है और न्याययालय से न्याय भी मिला है। इसलिए इस मामले में भी जमीअत उलमा-ए-हिन्द ने वकील आॅनरिकॉर्ड इरशाद हनीफ और वरिष्ठ एडवोकेट डॉक्टर राजीव धवन की सलाह पर एक रिट पेटशन शुरू में ही दाखिल की थी। मौलाना मदनी ने कहा कि जो लोग इसे हिंदू-मुस्लिम मुद्दा समझते हैं वे गलत हैं, सच्चाई यह है कि यह देश के संविधान से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला है लेकिन कुछ लोगों की ओर से यह लगातार हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बनाने का जानबूझकर प्रयास हो रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि उसके खिलाफ देश भर में लोग धर्म, जाति और समुदाय से ऊपर उठकर विरोध कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इस काले कानून ने सबको एक दूसरे से जोड़ दिया है और जो लोग आपसी एकता और एकजुटता को नुकसान पहुंचाने का सपना देख रहे थे उन्हें निराशा हाथ लगी है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में जहां-जहां शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया की तर्ज़ पर प्रदर्शन हो रहे हैं उनमें एक बड़ी संख्या हमारे गैर मुस्लिम भाइयों की होती है, उन्होंने कहा कि पिछले छह वर्षों के दौरान सरकार ने घृणा की जो दीवार विभिन्न भावनात्मक और धार्मिक मुद्दों को हवा देकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सुनियोजित तरीक़े से खड़ी की थी इन प्रदर्शनों ने इस दीवार को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है और यही हमारी असली ताक़त है। वास्तव में यह भारत की शक्ति है जिसके आगे सत्ता के नशे में चूर अंग्रेज़ों ने भी घुटने टेक दिए थे। उन्होंने अंत में कहा कि उनके विरोधों और प्रदर्शनों को आम विरोध या प्रदर्शन न समझाजाए बल्कि यह एक नई क्रांति की आहट है और केंद्र सरकार दीवार पर लिखे को पढ़ने की कोशिश करे अन्यथा कल तक बहुत देर हो सकती है।
ये खबर अरशद मैदानी के फेसबुक वॉल से ली गई है।
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