Friday, 05 March 2021 9.41pm
Nawaz Shearwani
गोरखपुर-प्रेम विवाह की घटती बढती माया
एम.एन.शेरवानी
"प्रेम विवाह दो व्यक्तियों के आपसी प्रेम, परवाह, आकर्षण और वादे से हुए मेल को कहते है। हालांकि इसका पाश्चिमात्य संस्कृती में कम महत्व है जहाँ लगभग अधिकांश विवाह "प्यार के आधार" पर होते है, परन्तु इसका अर्थ अन्य स्थानों पर विवाह के उस प्रकार को माना जाता है जो ज़बरदस्ती किया गया विवाह या ठहराया गया विवाह से अलग हो।
इसे दक्षिण एशियाई व मध्य पूर्वी देशों में अधिकतर उपयोग किया जाता है जहाँ पारंपरिक विवाह का प्रचलन अधिक है जिसमें महिला व पुरुष के परिवार वाले उनका विवाह तय करते हैं। संस्कृति के आधार पर प्रेम विवाह अप्रचलित व बदनामी की नज़र से देखे जाते हैं।"
गोरखपुर-जिंदगी में प्यार या कहिए कि प्रेम घर-परिवार में तो कायम रहता है, मगर वैवाहिक जिंदगी में पति-पत्नी के प्रेम में उतार-चढ़ाव बनता-बिगड़ता रहता है। ये बात नहीं है कि केवल प्रेम विवाह में विवाह के बाद प्रेम में खटास आने लगती है, बल्कि अरेंज्ड विवाह में भी ऐसा होना अपवादस्वरूप मौजूद है। लेकिन अरेंज्ड विवाह या तय किए हुए विवाह में पति-पत्नी में प्रेम में खटास होने का प्रतिशत बहुत कम होता है जबकि प्रेम विवाह या लव मैरेज के केसेस में लगभग 85 प्रतिशत से भी ज्यादा जोड़ों के प्रेम में खटास आ जाती है। अरेंज्ड मैरेज माता-पिता या परिवार द्वारा तय की जाती है, जबकि लव मैरेज या प्रेम विवाह लड़का-लड़की अपने पसंद से करते हैं। लव मैरेज इंटरकास्ट या विजातीय युगल में होता है जबकि तय विवाह सजातीय युगल में होता है। प्रेम विवाह- नुकसान ही नुकसान वास्तविकता के धरातल पर प्रेम विवाह में प्रेम का कहीं से कहीं तक स्थान नजर इसलिए नहीं आता, क्योंकि चार दिन के जज्बाती जुनून के सामने रोजी-रोटी का सवाल जब आ खड़ा होता है या जिंदगी में जब वास्तविक समस्याएं सामने आने लगती हैं तो प्रेम विवाह के प्रेम में धीरे-धीरे कमी आने लगती है। तकरीबन 82 प्रतिशत से ज्यादा ऐसे युगल हैं जिन्होंने विजातीय प्रेम विवाह किया और इनमें से लगभग 70 प्रतिशत जोड़े अलग हो गए। यानी तलाक ले लिया। प्रेम विवाह करने वाले विवाह से पूर्व अरेंज मैरिज को गलत बताते हैं। प्रेम विवाह की शान में कसीदे पढ़ते हैं। सबसे अव्वल तो प्रेम विवाह में परिवार को मनाना बहुत कठिन होता है। जब प्रेम विवाह का प्रस्ताव लड़के और लड़की द्वारा अपने-अपने माता-पिता के समक्ष रखा जाता है तो अधिकतर मामलों में उन्हें इस पर विरोध का सामना करना पड़ता है। लगभग 30 प्रतिशत ऐसे मामलों में परिवार वाले थक-हारकर मान लेते हैं और किसी प्रकार विवाह हो जाता है। मुहब्बत को पूंजी के रूप में मानकर जिंदगी शुरू करने के थोड़े ही समय बाद ऊबन, दर्द और खीझ का आलम छा जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। मस्तानी चाल और अविरल वार्तालाप से पूरे माहौल को सरस बना देने का सलीका। उछलते-मचलते हुए उनका वह स्वच्छंद विचरण देखें तो लगेगा कि यह सिलसिला कयामत तक जारी रहेगा। मां-बाप, समाज और संस्कृति को धत्ता बताते हुए ये लोग विवाह-सूत्र में बंध जाएंगे। लेकिन 5-6 साल बाद उन्हें देखने का मौका मिले तो आप निश्चित रूप से चौंक उठेंगे। हुलिया इतना बदल गया होगा कि आप पहचान भी नहीं पाएंगे। अभी 4-5 साल पहले जो जोश और जीवट के पुतले बनकर घूम रहे थे, आज कहां गई वह गालों की लालिमा, चेहरे की वह कांति, वह मस्तानी चाल? बेचारे सूखकर कांटे बन गए हैं। खोए-खोए से घूम रहे हैं, जैसे उनका सर्वस्व नष्ट हो गया हो। तय विवाह का प्रेम ये जरूरी नहीं कि प्रेम विवाह में ही प्रेम में कमी आने लगती है। कई बार अरेंज्ड विवाह में भी ऐसा होता है लेकिन पारिवारिक और सामाजिक स्थिति के कारण ऐसा बहुत कम होता है। एक-दूसरे को समझना और जिंदगी की स्थिति प्रेम विवाह या अरेंज्ड विवाह में पति-पत्नी एक-दूसरे को समझने का प्रयास भी करते हैं और समझ भी लेते हैं। लेकिन ये समझदारी रोजी-रोटी या परिवार चलाने के दौरान अलग-अलग स्थिति पैदा कर देती है। फिर भी अरेंज या तय विवाह में इसका किसी न किसी प्रकार से समाधान निकल जाता है, जबकि प्रेम विवाह में इसके विपरीत होता है। पति-पत्नी में अलगाव पैदा होने लगता है। प्रेम विवाह के बाद विवाहित जोड़ा जब परिवार और समाज से जुड़ता है तो परिवार और समाज के तानों से रूबरू होना पड़ता है जिसका सामना करना बेहद कठिन होता है। शादी स्वर्ग में तय नहीं होती, बल्कि हम ही इसे स्वर्ग और नरक में तब्दील कर देते हैं। चाहे प्रेम विवाह हो या तयशुदा विवाह। परिवार के यदि सभी सदस्य समझदार और शिक्षित होते हैं तो प्रेम विवाह भी सफल हो जाते हैं।